किराअत का बयान | Kiraot ka bayaan in hindi

किराअत का बयान 

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किराअत यानी कुरआन शरीफ पढ़ने में इतनी आवाज़ होनी चाहिए कि अगर बहरा न हो और शोर गुल न हो तो खुद अपनी आवाज सुन सके । अगर इतनी आवाज भी न हुई तो किराअत नहीं हुई । और नमाज़ न हुई । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 359 ) 

मसला : - फ़ज्र में और मगरिब व इशा की पहली दो रकअतों में और जुमा व ईदैन व तरावीह और रमज़ान की वित्र में इमाम पर जह्ऱ के साथ किराअत करना वाजिब है । और मगरिब की तीसरी रकअत में और इशा की तीसरी और चौथी रकअत में और जुहर व अस्त्र की सब रकअतों में आहिस्ता पढ़ना वाजिब है । 

मसला : - जह्ऱ के यह माना हैं कि इतनी जोर से पढ़े कि कम से कम सफ़ में करीब के लोग सुन सकें और आहिस्ता पढ़ने के यह माना हैं कि कम में से कम खुद सुन सके । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 358 )

मसला : - जह्ऱी नमाज़ों में अकेले को इख़्तियार है चाहे जोर से पढ़े चाहे आहिस्ता मगर ज़ोर से पढ़ना अफ़ज़ल है । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 358 ) 

मसला : - कुरआन शरीफ उलटा पढ़ना मकरूह तहरीमी है । मसलन  यह कि पहली रकअत में कुल हुवल्लाह और दूसरी रकअत में तब्बत् पढ़ना । ( दुर्रे मुख़्तार जि . 1 स . 368 ) 

मसलाः - दर्मियान से एक छोटी सूरह छोड़ कर पढ़ना मकरूह है । जैसे पहली रकअत में कुल हुवल्लाह पढ़ी और दूसरी रकअत में कुल अऊजु बिरब्बिऩ्नास पढ़ी और दर्मियान में सिर्फ एक सूरह कुल अऊजु बिरब्बिल् फलक छोड़ दी । लेकिन हां अगर दर्मियान की सूरह पहले से हो तो । दर्मियान में एक सूरह छोड़ कर पढ़ सकता है । जैसे वत्तीनि के बाद इऩ्ना  अनजलना पढ़ने में हरज नहीं । और इजा जा---अ के बाद कुल हुवल्लाह पढ़ना नहीं चाहिए । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 368 )

मसला : - जुमा व ईदैन में पहली रकअत में सूरह जुमुअ: और दूसरी रकअत में सूरह मुनाफिकून या पहली रकअत में सब्बिहिस्मि रब्बिकल् अअ्ला और दूसरी रकअत में हल् अता - क हदीसुल गाशि---यः पढ़ना सुन्नत है । ( रद्दलमुहतार जि . 1 स . 365 )

नमाज के बाहर तिलावत का बयानः - मुस्तहब यह है कि बावुजू किबला रू अच्छे कपड़े पहन कर सही सही हुरूफ अदा करके अच्छी आवाज़ से कुरआन शरीफ पढ़े । लेकिन गाने के लहजा में नहीं कि गाकर कुरआन पढ़ना जाइज़ नहीं । तिलावत के शुरू में अऊ  जु बिल्लाह पढ़ना वाजिब है और सूरह के शुरू में बिस्मिल्लाह पढ़ना सुन्नत है । तिलावत के दर्मियान में कोई दुनियावी कलाम या काम करे तो अऊजु बिल्लाह व बिस्मिल्लाह फिर पढ़ ले । ( गुनिया वगैरह ) 

मसला : - गुस्ल खाना और नजासत की जगहों में कुरआन शरीफ पढ़ना नाजाइज़ है । ( गुनिया ) 

मसला : - जब कुरआन शरीफ बुलन्द आवाज से पढ़ा जाये तो हाज़िरीन पर सुनना फर्ज है । जब कि वह मजमा सुनने की गरज से हाजिर हो वरना एक का सुनना काफी है । अगरचे और लोग अपने अपने काम में हों । ( गुनिया , फतावा रज़विया वगैरह ) 

मसला : - सब लोग मजमा में जोर से कुरआन शरीफ पढ़े यह नाजाइज़ है । अक्सर उर्स व फ़ातिहा वगैरह के मौकों पर सब लोग जोर जोर से तिलावत करते हैं यह नाजाइज है । अगर चन्द आदमी पढ़ने वाले हों तो सब लोग आहिस्ता पढ़ें । (दुर्रे  मुख्तार वगैरह ) 

मसला : - बाजारों और कारखानों में जहां लोग काम में लगे हों जोर । से कुरआन शरीफ पढ़ना नाजाइज़ है । क्योंकि लोग अगर न सुनेंगे तो गुनहगार होंगे । ( रद्दलमुहतार जि . 1 स . 367 ) 

मसला : - कुरआन शरीफ़ बुलन्द आवाज़ से पढ़ना अफजल है जबकि नमाजी या बीमार या सोने वाले को तकलीफ न पहुंचे ।

मसलाः - कुरआन शरीफ़ को पीठ न की जाये , न उसकी तरफ़ पाँव फैलायें , न उससे ऊँची जगह बैठे , न उस पर कोई किताब रखें , अगरचे हदीस व फिकह की किताब हो । 

मसला : - कुरआन शरीफ अगर बोसीदा होकर पढ़ने के काबिल न रह गया तो किसी पाक कपड़े में लपेट कर इहतियात की जगह दफ़न करदे और उसके लिए लहद बनाई जाये ताकि मिट्टी उसके ऊपर न पड़े । कुरआन शरीफ को जलाना नहीं चाहिए । बल्कि दफ़न ही करना चाहिए है । ( आलमगीरी व बहारे शरीअत जि . 16 स . 118 ) 

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