Posts

Showing posts from February, 2019

अहकामे मस्जिद का बयान | Ahkame mszid ka bayaan in hindi

Image
अहकामे मस्जिद का बयान  Third party image reference जब मस्जिद में दाखिल हो तो दुरूद शरीफ पढ़ कर पढ़े और जब मस्जिद से निकले तो दुरूद शरीफ के बाद पढ़े ।   मसला : - मस्जिद की छत का भी मस्जिद ही की तरह अदब व एहतेराम लाजिम है । बिला जरूरत मस्जिद की छत पर चढ़ना ' मकरूह है । ( बहारे शरीअत जि , 3 स . 178 )   मसला : - बच्चे को और पागल को जिन से गन्दगी का गुमान हो मस्जिद में ले जाना हराम है । और नजासत का डर न हो तो मकरूह है । मसला : मस्जिद का कूड़ा झाड़ कर ऐसी जगह डाले जहां बे अदबी न हो ।  मसला : - नापाक कपड़ा पहन कर या कोई भी नापाक चीज़ लेकर मस्जिद में जाना मना है । यूंही नापाक तेल मस्जिद में जलाना , या नापाक गारा मस्जिद में लगाना मना है । मसला : - वुजू के बाद बदन का पानी मस्जिद में झाड़ना या मस्जिद में थूकना या नाक साफ़ करना नाजाइज़ है । ( आलमगीरी जि . 1 स . 103 ) मसला : - मस्जिद में इन आदाब का लिहाज़ रखे -  ( 1 ) जब मस्जिद में दाखिल हो तो सलाम करे | बशर्ते कि जो लोग वहां मौजूद हों ज़िक्र व दर्स में मश्गूल न हों । और अगर कोई वहां न हो या जो लोग वहां हैं वह जिक्र व दर

किराअत का बयान | Kiraot ka bayaan in hindi

Image
किराअत का बयान    Third party image reference किराअत यानी कुरआन शरीफ पढ़ने में इतनी आवाज़ होनी चाहिए कि अगर बहरा न हो और शोर गुल न हो तो खुद अपनी आवाज सुन सके । अगर इतनी आवाज भी न हुई तो किराअत नहीं हुई । और नमाज़ न हुई । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 359 )  मसला : -  फ़ज्र में और मगरिब व इशा की पहली दो रकअतों में और जुमा व ईदैन व तरावीह और रमज़ान की वित्र में इमाम पर जह्ऱ के साथ किराअत करना वाजिब है । और मगरिब की तीसरी रकअत में और इशा की तीसरी और चौथी रकअत में और जुहर व अस्त्र की सब रकअतों में आहिस्ता पढ़ना वाजिब है ।  मसला : -  जह्ऱ के यह माना हैं कि इतनी जोर से पढ़े कि कम से कम सफ़ में करीब के लोग सुन सकें और आहिस्ता पढ़ने के यह माना हैं कि कम में से कम खुद सुन सके । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 358 ) मसला : -  जह्ऱी नमाज़ों में अकेले को इख़्तियार है चाहे जोर से पढ़े चाहे आहिस्ता मगर ज़ोर से पढ़ना अफ़ज़ल है । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 358 )  मसला : -  कुरआन शरीफ उलटा पढ़ना मकरूह तहरीमी है । मसलन  यह कि पहली रकअत में कुल हुवल्लाह और दूसरी रकअत में तब्बत् पढ़ना । ( दुर

सज्दए तिलावत का बयान | Sajdae tilawat ka bayaan in hindi

Image
सज्दए तिलावत का बयान  Third party image reference कुरआन मजीद में चौदह आयतें ऐसी है कि जिनके पढ़ने या सुनने से पढ़ने वाले और सुनने वाले दोनों पर सज्दा करना वाजिब हो जाता है । उसको सज्दए तिलावत कहते हैं । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 513 ) मसला : -  सज्दए तिलावत का तरीका यह है कि किबला रुख खड़े होकर अल्लाहु अक्बर कहता हुआ सज्दे में जाये और कम से कम तीन बार सुबहा----न रब्बियल् अअ्ला कहे फिर अल्लाहु अक्बर कहता हुआ खड़ा हो जाये , बस । न उसमें अल्लाहु अक्बर कहते हुए हाथ उठाना है न उसमें तशह्हूद है न सलाम । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 513 ) मसला : -  अगर आयते सज्दा नमाज के बाहर पढ़ी है तो फौरन ही सज्दा । कर लेना वाजिब नहीं है । हां बेहतर यही है कि फौरन ही करे और वुजू हो तो देर करनी मकरूह तन्ज़ीही है ।  ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 517 )    मसला : -  अगर सज्दे की आयत नमाज में पढ़ी है तो फौरन ही सज्दा करना वाजिब है ।   अगर तीन आयत पढ़ने की मिकदार देर लगा दी तो गुनहगार होगा । और अगर नमाज में सज्दे की आयत पढ़ते ही फौरन रुकूअ में चला गया और रुकूअ के बाद नमाज के दोनों सज्दों को कर लिया

मुसाफ़िर की नमाज़ का बयान | Mushafir ki namaz ka bayaan in hindi

Image
मुसाफ़िर की नमाज़ का बयान    Third party image reference जो शख्स तकरीबन 92 किलोमीटर की दूरी के सफर का इरादा करके घर से निकला और अपनी बस्ती से बाहर चला गया तो शरीअत में यह शख्स मुसाफिर हो गया । अब उस पर वाजिब है कि कसर करे । यानी जुहर व अस्त्र व इशा में चार रकअत वाली फ़र्ज़ नमाज़ों को दो ही रकअत पढ़े । क्योंकि उसके हक में दो ही रकअत पूरी नमाज है । ( दुर्रे मुख्तार स . 525 ) मसलाः -  अगर मुसाफिर ने कस्दन चार रकअत पढ़ी और दोनों कअदा किया तो फ़र्ज़ अदा हो गया और आखिरी दो रकअतें नफ़्ल हो गई , मगर गुनहगार हुआ । और अगर दो रकअत पर कअदा नहीं किया तो फ़र्ज़ अदा न हुआ । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 530 ) मसलाः -  मुसाफ़िर जब तक किसी जगह पर पन्द्रह दिन या उस से ज्यादा ठहरने की नीयत न करे या अपनी बस्ती में न पहुंच जाये कसर करता रहेगा । मसलाः - मुसाफिर अगर मुकीम इमाम के पीछे नमाज़ पढ़े तो चार रकअत पूरी पढ़े । कसर न करे ।  मसलाः -  मुकीम अगर मुसाफ़िर इमाम के पीछे नमाज़ पढ़े तो इमाम मुसाफ़िर होने की वजह से दो ही रकअत पर सलाम फेर देगा । अब मुकीम मुकतदियों को चाहिए कि इमाम के सलाम फेर देने के ब

बीमार की नमाज का बयान | Bimar ki namaz ka bayaan in hindi

Image
बीमार की नमाज का बयान    बीमार की नमाज का बयान अगर बीमारी की वजह से खड़े होकर नमाज़ नहीं पढ़ सकता कि मरज बढ़ जाएगा । या देर में अच्छा होगा । या चक्कर आता है । या खड़े होकर पढ़ने से पेशाब का कतरा आएगा । या नाकाबिले बरदाश्त दर्द हो जाएगा तो इन सब सूरतों में बैठ कर नमाज पढ़े ।  ( दुर्रे मुख्तार जि , 1 स . 508 )   मसल : -  अगर लाठी या दीवार से टेक लगा कर खड़ा हो सकता है तो उस पर फ़र्ज़ है कि खड़े होकर नमाज पढ़े । इस सूरत में अगर बैठ कर नमाज़ पढ़ेगा तो नमाज़ नहीं होगी ।    ( दुर्रे मुख्तार जि , 1 स . 509 )   मसला : -  अगर कुछ देर के लिए भी खड़ा हो सकता है अगरचे इतना ही खड़ा हो कि खड़ा होकर अल्लाहु अक्बर कह ले तो फ़र्ज़ है कि खड़ा होकर इतना कह ले फिर बैठे वरना नमाज़ न होगी ।     ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 509 )  मसला : -  अगर रुकूअ व सज्दा न कर कसता हो तो बैठ कर नमाज़ पढ़े और रुकूअ व सज्दा इशारे से करे । मगर रुकूअ के इशारे से सज्दा के इशारे में सर को ज्यादा झुकाये ।     ( दुर्रे मुख़्तार स . 509 ) मसला : -  अगर बैठ कर भी नमाज़ न पढ़ सकता हो तो ऐसी सूरत में लेट कर नमाज़ पढ़े

नमाज के मकरूहात | Namaz ke mkruhat in hindi

Image
नमाज के मकरूहात  Third party image reference नमाज में जो बातें मकरूह हैं वह ये है ---- कपड़े या बदन या दाढ़ी मूंछ से खेलना , कपड़ा समेटना , जैसे सज्दे में जाते वक़्त आगे या पीछे से दामन या चादर या तहबन्द उठा लेना । कपड़ा लटकाना यानी सर या कन्धे पर कपड़ा चादर वगैरह इस तरह डालना कि दोनों किनारे लटकते हों । किसी एक आस्तीन को आधी कलाई से ज्यादा चढ़ाना , दामन समेट कर नमाज पढ़ना । पेशाब पाखाना मालूम होते वक़्त या गलबए रियाह के वक़्त नमाज पढ़ना । मर्द का सर के बालों का जूड़ा बांध कर नमाज पढ़ना । उंगलियां चटखाना , इधर उधर मुह फेर कर देखना । आसमान की तरफ निगाह उठाना । मर्द का सज्दे में कलाईयों को जमीन पर बिछाना । अत्तहिय्यात में या दोनों सज्दों के दर्मियान दोनों हाथों को रान पर रखने की बजाय जमीन पर रख कर बैठना । किसी शख्स के मुंह के सामने नमाज़ पढ़ना । चादर में इस तरह लिपट कर नमाज पढ़ना कि बदन का कोई हिस्सा यहां तक कि हाथ भी बाहर न हो । पगड़ी इस तरह बांधना कि बीच सर पर पगड़ी का कोई हिस्सा न हो । नाक और मुंह को छुपा कर नमाज पढ़ना । बे जरूरत खंकारना । कस्दन जमाही लेना , अगर खुद ही जमाही आ जा

नमाज़ फासिद करने वाली चीजें | Namaz fasid karne wali chizay in hindi

Image
नमाज़ फासिद करने वाली चीजें  Third party image reference नमाज़ में बोलने से नमाज़ टूट जाती है । चाहे जान बूझ कर बोले या भल कर बोले । ज्यादा बोले या एक ही बात बोले । अपनी खुशी से बोले या किसी के मजबूर करनेसे बोले । बहर सूरत नमाज टूट जाएगी । इसी तरह ज़बान से किसी को सलाम करे अमदन हो या सह्वन नमाज जाती रहेगी । यूं ही सलाम का जवाब देना भी नमाज को फ़ासिद कर देता है । किसी को छींक के जवाब में यर् - है - मुकल्लाह कहा या बुरी खबर सुनकर इन्ऩा लिल्लाहि व इऩ्ना इलैहि राजिऊन कहा तो इन सूरतों में नमाज़ टूट जाएगी । लेकिन अगर खुद नमाज़ पढ़ने वाले को छींक आई तो हुक्म है कि वह चुप रहे । लेकिन अगर अल्हम्दु लिल्लाह कह दिया तो उसकी नमाज फासिद नहीं होगी । नमाज़ पढ़ने वाले ने अपने इमाम के गैर को लुकमा दिया तो उसकी नमाज फ़ासिद हो गई । और अगर उसने लुकमा ले लिया तो उसकी भी नमाज़ जाती रहेगी । और गलत लुकमा देने से लुकमा देने वाले की नमाज़ जाती रहती है । अल्लाह अक्बर के अलिफ को खींच कर आल्लाहु अक्बर कहना या आक्बर या अक्बार कहना नमाज़ को फ़ासिद कर देता है । इसी तरह नसतईनु को अलिफ के साथ नसताईनु पढ़ने और

सज्दए सह्व् का बयान | Sajdae sahw ka bayaan in hindi

Image
सज्दए सह्व् का बयान  Third party image reference जो चीजें नमाज में वाजिब हैं अगर उन में से कोई वाजिब भूल से छूट जाये तो उसकी कमी को पूरी करने के लिए सज्दए सह्व् वाजिब है । और इसका तरीका यह है कि नमाज़ के आखिर में अत्तहिय्यात पढ़ने के बाद दाहिनी तरफ सलाम फेरने के बाद दो सज्दा करे और फिर अत्तहिय्यात और दुरूद शरीफ़ और दुआ पढ़ कर दोनों तरफ सलाम फेर दे । ( दुरै मुख़्तार जि . 1 स . 496 ) मसला : -  अगर कुस्दन किसी वाजिब को छोड़ दिया तो सज्दए सह्व् में काफी नहीं बल्कि नमाज़ दोहराना वाजिब है । ( दुरै मुख्तार जि . 1 स . 496 ) मसला : -  जो बातें नमाज़ में फ़र्ज़ हैं अगर उन में से कोई बात छूट गई तो नमाज़ होगी ही नहीं और सज्दए सह्व् से भी यह कमी पूरी नहीं हो सकती । ( आम्मए कुतुब ) बल्कि फिर से उस नमाज़ को पढ़ना ज़रूरी है ।  मसला : -  एक नमाज़ में अगर भूल से कई वाजिब छूट गए तो एक मर्तबा वही दो सज्दे सह्व् के सब के लिए काफी हैं । चन्द बार सज्दए सह्व् की  ज़रूरत नहीं । ( रदुलमुहतार जि . 1 स . 497 )    मसला : -  पहले कअदा में अत्तहिय्यात पढ़ने के बाद तीसरी रकअत के लिए खड़े होने में इतनी

वित्र की नमाज़ | witr ki namaz in hindi

Image
वित्र की नमाज़  Third party image reference वित्र की नमाज वाजिब है । अगर किसी वजह से वित्र की नमाज वक़्त के अन्दर नहीं पढ़ी तो वित्र की कज़ा पढ़नी वाजिब है । ( आलमगीरी जि . 1 स . 104 वगैरह )  नमाजे वित्र तीन रकअतें एक सलाम से हैं । दो रकअत पर बैठे और सिर्फ अत्तहिय्यात पढ़ कर तीसरी रकअत के लिए खड़ा हो जाये और तीसरी  रकअत में अल्हम्द और सूरह पढ़े फिर दोनों हाथ कानों की लौ तक उठाये और अल्लाहु अक्बर कह कर फिर हाथ बांध ले और दुआए कुनूत पढ़े । जब दुआए कुनूत पढ़ चुके तो अल्लाहु अक़्बर कह कर रुकूअ करे और बाकी नमाज़ पूरी करे | दुआए कुनूत यह है --- दुआ़ए क़ुनूत  Third party image reference मसला : -  जो दुआएकुनूत न पढ़ सके तो वह यह दुआ पढ़े---और जिस से यह भी न हो सके तो तीन मर्तबा  अल्लाहुम्मगफिरली पढ़ ले उसकी वित्र अदा हो जाएगी । ( आलमगीरी जि . 1 स . 104 ) मसला : -  दुआए कुनूत वित्र में पढ़ना वाजिब है । अगर भूल कर दुआए । कुनूत छोड़ दे तो सज्दए सह्व करना ज़रूरी है । और अगर कस्दन छोड़ दिया है तो वित्र को दोहराना पड़ेगा । ( आलमगीरी जि . 1 स . 104 ) मसला : -  दुआए कुनूत हर शख्स

जमाअत व इमामत का बयान | Zmaaot wa imamat ka bayaan in hindi

Image
जमाअत व इमामत का बयान    Third party image reference जमाअत की बहुत ताकीद है और उसका सवाब बहुत ज्यादा है । यहां तक कि बे जमाअत की नमाज से जमाअत वाली नमाज का सवाब सताईस गुना है । ( मिश्कात जि . 1 स . 95 ) मसला : -  मर्दों को जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ना वाजिब है । बिला उज़्र एक बार भी जमाअत छोड़ने वाला गुनहगार और सजा के लाइक है और जमाअत छोड़ने की आदत डालने वाला फ़ासिक है । जिसकी गवाही कबूल नहीं की जाएगी और बादशाहे इस्लाम उसको सख्त सजा देगा । और अगर पड़ोसियों ने सुकूत किया तो वह भी गुनहगार होगे । ( रद्दलमुहतार जि . 1 , 371 )  मसला : -  जुमा व ईदैन में जमाअत शर्त है यानी बगैर जमाअत यह दोनों नमाजें होंगी ही नहीं । तरावीह में जमाअत सुन्नते किफाया है । यानी मुहल्ला के कुछ लोगों ने जमाअत से पढ़ी तो सब के जिम्मे से जमाअत छोड़ने की बुराई जाती रही । और अगर सब ने जमाअत छोड़ी तो सब ने बुरा किया । रमजान शरीफ में वित्र को जमाअत से पढ़ना यह जमाअत मुस्तहब है । सून्नतो और नफ़्लों में जमाअत मकरूह है । ( दुरै मुख्तार जि . 1 स 301 ) मसला : -  जिन उज़्रों की वजह से जमाअत छोड़ने में गुनाह नहीं वह ये

नम़ाज़ के बाद ज़िक्र व दुआ़ | Namaz ke baad zekr wa duaa in hindi

Image
नम़ाज़ के बाद ज़िक्र व दुआ़  Third party image reference नमाज के बाद बहुत से अजकार और दुआओं के पढ़ने का हदीसो में जिक्र है । उनमें से जिस कदर पढ़ सके पढ़े । लेकिन जुहर व मगरिब और ईशा में तमाम वजीफे सुन्नतों से फारिग होने के बाद पढ़े । सुन्नत से पहले मुख्तसर दुआ पर कनाअत चाहिए वरना सुन्नतों का सवाब कम हो जाएगा इसका ख्याल रखें । ( रद्दलमुहतार ) फाइदा : -  हदीसों में जिन दुआओं के बारे में जो तादाद मुकर्रर है उनसे कम या ज्यादा न करे । क्योंकि जो फ़जाइल इन दुआओं के हैं उन्हीं अददो के साथ मख़्सूस हैं । उनमें कमी बेशी करने की मिसाल यह है कि कोई ताला किसी खास किस्म की कुन्जी से से खुलता है तो अगर उस कुन्जी के दन्दाने कुछ कम या जाइद करदें तो उससे वह ताला न खुलेगा । हां अलबत्ता अगर गिनती शुमार करने में शक हो जाये तो ज्यादा कर सकता है । और यह ज्यादा करना गिनती बढ़ाने के लिए नहीं है । बल्कि गिनती को यकीनी तौर पर परी । है करने के लिए है । ( र द्द लमुहतार  )  एक मस्नून वजीफा : -  हर नमाज के बाद तीन बार इस्तिगफार और एक बार आयतुलकुर्सी और एक एक बार कुल हुवल्लाह और कुल अऊज़ बि - रब्बिल फलक औ

अफ़आले नमाज की किस्में | Afaale namaz ki kisme in hindi

Image
अफ़आले नमाज की किस्में    Third party image reference नमाज़ पढ़ने का जो तरीका बयान किया गया है । उस में जिन जिन कामों का जिक्र किया गया है , उनमें से बाज़ चीजें फ़र्ज़ हैं कि उनके बगैर नमाज होगी ही नहीं । बाज वाजिब हैं कि अगर कस्दन उनको छोड़ दिया जाये । तो गुनाह भी होगा और नमाज़ को भी दुहराना पड़ेगा । और अगर भूल कर उनको छोड़ा तो सज्दए सह्व करना वाजिब होगा । और बाज़ सुन्नते मूअक्कदा हैं कि उनको छोड़ने की आदत गुनाह है । और बाज़ मुस्तहब हैं कि उनको करें तो सवाब और न करें तो कोई गुनाह नहीं । अब हम उन बातों की कुछ वजाहत करते है । उनको गौर से पढ़ कर अच्छी तरह याद कर लो । फ़राइजे नमाजः -  सात चीज़े नमाज में फ़र्ज़ हैं कि अगर उनमें से किसी एक को भी छोड़ दिया तो नमाज़ होगी ही नहीं ।  ( 1 ) तकबीरे तहरीमा  ( 2 ) कियाम  ( 3 ) किरअत  ( 4 ) रुकूअ  ( 5 ) सज्दा  ( 6 ) कअदा अख़ीरा  ( 7 ) कोई काम करके मसलन सलाम या कलाम करके नमाज़ से निकलना । तकबीरे तहरीमा का यह मतलब है कि अल्लाहु अक्बर कह कर नमाज शुरू करना । नमाज़ में तो बहुत मर्तबा अल्लाहु अक्बर कहा जाता है मगर शुरू नमाज में पहली