Posts

Showing posts from March, 2019

ग्रहन की नमाज । grahan kee namaaj in hindi

ग्रहन की नमाज   सूरज ग्रहन की नमाज़ सुऩ्नते मुअक्कदा और चाँद ग्रहन की नमाज़ मुस्तहब है । सूरज ग्रहने की नमाज़ जमाअत से पढ़नी मुस्तहब हे । और तन्हा तन्हा भी हो सकती है । अगर जमाअत से पढ़ी जाये तो खुतबा के सिवा जुमा की तमाम शर्तें उसके लिए शर्त हैं । वही शख्स उसकी जमाअत काइम कर  सकता है जो जुमा की जमाअत काइम कर सकता हो । अगर वह न हो तो लोग तन्हा तन्हा पढ़े चाहे घर में पढ़े या मस्जिद में ।  मसला - ग्रहन की नमाज़ नफ्ल की तरह दो रकअत लम्बी लम्बी सूरतों के साथ पढ़ें । फिर उस वक़्त तक दुआ मांगते रहें कि ग्रहन खत्म हो जाये ।    मसला : - ग्रहन की नमाज़ में न अज़ान है न इकामत | न बुलन्द आवाज़ ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 565 ) से किरअत ।  grahan kee namaaj sooraj grahan kee namaaz sunnate muakkada aur chaand grahan kee namaaz mustahab hai . sooraj grahane kee namaaz jamaat se padhanee mustahab he . aur tanha tanha bhee ho sakatee hai . agar jamaat se padhee jaaye to khutaba ke siva juma kee tamaam sharten usake lie shart hain . vahee shakhs usakee jamaat kaim kar sakata hai jo juma kee

अकीका का बयान | Akeeka ka bayaan in hindi

Image
अकीका का बयान  Third party image reference बच्चा पैदा होने के शुक्र में जो जानवर ज़बह किया जाता है उसे अकीका कहते हैं ।  मसलाः - जिन जानवरों को कुरबानी में जबह किया जाता है उन्ही जानवरों को अकीका में भी ज़बह कर सकते हैं ।   मसलाः - लड़के के अकीका में दो बकरे और लड़की के अकीका में एक बकरा जबह करना बेहतर है । अगर गाय , भैंस अकीका में जबह करे तो दो हिस्से लड़के की तरफ से और एक हिस्सा लड़की की तरफ से जबह करने की नीयत करे । और अगर चाहे तो पूरी गाय या भैंस लड़के या लड़की के अकीका में जब करदे ।  मसला: - गाय भैस में कुरबानी के वक़्त कुछ हिस्सा कुरबानी की नीयत से और कुछ हिस्सा अकीका की नीयत से रख कर जबह करे तो एक ही जानवर में कुरबानी और अकीका दोनों हो जाएगा । और ऐसा करना जाइज है । मसला - अकीका के लिए बच्चे की पैदाइश का सातवाँ दिन बेहतर है । और सातवें दिन न कर सकें तो जब चाहें करें सुऩ्नत अदा हो जाएगी ।   मसला : - अकीका का गोश्त बच्चे के मां , बाप , दादा , दादी , नाना , नानी , वगैरह सब खा सकते हैं । जाहिलों में जो यह मशहूर है कि अकीका का गोश्त यह लोग नहीं खा सकते यह बिल्कुल

कुरबानी का बयान | Kurabaanee ka bayaan in hindi

Image
कुरबानी का बयान  Third party images reference मसलाः - हर मालिके निसाब मर्द व औरत पर हर साल कुरबानी वाजिब है । यह एक माली इबादत है । खास जानवर को खास दिन में अल्लाह के लिए सवाब की नीयत से जबह करना इसका नाम कुरबानी है ।   मसला : - मालिके निसाब वह शख्स है जो साढ़े बावन तोला चाँदी या साढ़े सात तोला सोना या इन में से किसी एक की कीमत के सामाने तिजारत या किसी सामान या रुपयों , नोटों , पैसों का मालिक हो और ममलूका चीजें हाजते असलिया से जाइद हों । मसला : - मालिके निसाब पर हर साल अपनी तरफ से कुरबानी करना वाजिब है | अगर दूसरे की तरफ से भी करना चाहता है तो उसके लिए दूसरी कुरबानी का इन्तेजाम करे । मसलाः - कुरबानी का जानवर मोटा ताजा अच्छा और बे ऐब होना जरूरी है । अगर थोड़ा सा ऐब हो तो कुरबानी मकरूह होगी । अगर ज्यादा ऐब है तो कुरबानी होगी ही नहीं ।   मसलाः - अन्धा , लंगड़ा , काना , बेहद दुबला , तिहाई से ज्यादा कान , दुम ,  सींग , थन वगैरह कटा हुआ , पैदाइशी बे - कान का , बीमार , इन सब जानवरों की कुरबानी जाइज़ नहीं । कुरबानी का तरीकाः - कुरबानी का तरीका यह है कि जानवर को बायें पहलू पर

नमाज़े ईदैन का बयान | Namaaze eedain ka bayaan in hindi

Image
 नमाज़े ईदैन का बयान  Third party images reference ईद व बकर ईद की नमाज वाजिब है मगर सब पर नहीं । बल्कि सिर्फ उन्हीं लोगों पर जिन लोगों पर जुमा फर्ज है । बिला वजह ईदैन की नमाज छोड़ना सख्त गुनाह है ।  ( दुर्रे मुख्तार जि . सि . 555 )  मसला : - ईदैन की नमाज़ वाजिब होने और जाइज होने की वही शर्तें हैं जो जुमा के लिए हैं । फर्क इतना है कि जुमा का खुतबा शर्त है और ईदैन का खुतबा सुऩ्नत है । दूसरा फ़र्क़ यह भी है कि जुमा का खुतबा नमाज़ से पहले है और ईदैन का खुतबा नमाज़े ईदैन के बाद है । और एक तीसरा फर्क यह भी है कि जुमा के लिए अजान व इकामत है और ईदैन के लिए न अजान है न इकामत । सिर्फ दो बार कह कर नमाजे ईदैन के एलान की इजाजत है । मसला : - ईदैन की नमाज का वक़्त एक नेज़ा सूरज बुलन्द होने से जवाल होने के पहले तक है । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 558 ) मसला : - ईद के दिन यह बातें मुस्तहब है - ( 1 ) हजामत बनवाना   ( 2 ) नाखुन कटवाना  ( 3 ) गुस्ल करना  ( 4 ) मिस्वाक करना  ( 5 ) अच्छे कपड़े पहनना , नये हो या पुराने  ( 6 ) अंगूठी पहनना  ( 7 ) खुश्बू लगाना  ( 8 ) सुबह की नमाज म

जुमा का बयान | Juma ka bayaan in hindi

Image
जुमा का बयान  Third party images reference जुमा फर्ज है और उसका फर्ज होना जुहर से ज्यादा मुअक्कद है । इसका मुन्किर काफ़िर है । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 535 ) हदीस शरीफ में है कि जिसने तीन जुमे बराबर छोड़ दिये उसने इस्लाम को पीठ के पीछे फेंक दिया । वह मुनाफ़िक है और अल्लाह से बे - तअल्लुक है । ( इब्ने खुजैमा व बहारे शरीअत )   मसला : - जुमा फर्ज होने के लिए मुन्दर्जा जैल ग्यारह शर्ते हैं ----  ( 1 ) शहर में मुकीम होना - लिहाजा मुसाफ़िर पर जुमा फर्ज नहीं ।  ( 2 ) आज़ादा होना - लिहाज़ा गुलाम पर जुमा फर्ज नहीं ।  ( 3 ) तन्दुरुस्ती यानी ऐसे मरीज़ पर जुमा फर्ज नहीं जो जामा मस्जिद तक नहीं जा सकता  ( 4 ) मर्द होना यानी औरत पर जुमा फर्ज नहीं  ( 5 ) आकिल होना यानी पागल पर जुमा फर्ज नहीं  ( 6 ) बालिग होना यानी बच्चा पर जुमा फर्ज नहीं  ( 7 ) अंखियारा होना यानी अन्धे पर जुमा फुर्ज नहीं  ( 8 ) चलने की कुदरत रखने वाला यानी अपाहिज और लुन्जे पर जुमा फर्ज नहीं  ( 9 ) कैद में न होना - लिहाजा जेल खाना के कैदियों पर जुमा फर्ज नहीं  ( 10 ) हाकिम या ज़ालिम वगैरह का खौफ न होन

नमाजों की कजा का बयान | Namazo ki qaza ka bayaan in hindi

Image
नमाजों की कजा का बयान    Third party image reference मसलाः - किसी इबादत को उस के मुकर्ररा वक़्त वर अदा करने को अदा कहते हैं । और वक़्त गुजर जाने के बाद अमल करने को कजा कहते हैं ।  मसलाः - फर्ज नमाजों की कजा फर्ज है । वित्र की कजा वाजिब है । फज्र की सुऩ्नत अगर फर्ज के साथ कजा हो और जवाल से पहले पढ़े तो फर्ज के साथ सुऩ्नत भी पढ़े । और अगर जवाल के बाद पढ़े तो सुऩ्नत की कजा नहीं । जुमा और जुहर की सुऩ्नतें कजा हो गई और फर्ज पढ़ लिया , अगर वक़्त खत्म हो गया तो उन सुऩ्नतों की कजा नहीं । और अगर वक़्त बाकी है तो उन सुऩ्नतों को पढ़े । और अफज़ल यह है कि पहले फर्ज के बाद वाली सुऩ्नतों को पढ़े फिर उन छूटी हुई सुऩ्नतों को पढ़े । ( दुर्रे मुख्तार जि , 1 स . 488 )  मसला : - जिस शख्स की पांच नमाजें या इससे कम कजा हो उसको साहेबे तर्तीब कहते हैं । उस पर लाजिम है कि वक़्ती नमाज से पहले कजा नमाजो को पढ़ ले । अगर वक़्त में गुन्जाइश होते हुए और कजा नमाज को याद रखते हुए वक़्ती नमाज़ को पढ़ ले तो यह नमाज नहीं होगी । मजीद तफ़सील “ बहारे शरीअत " में देखनी चाहिए ।  ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 . 488 )  मस

तरावीह का बयान | Travih ka bayaan in hindi

Image
तरावीह का बयान     Third party image reference   मसला : - मर्द व औरत सब के लिए तरावीह सुन्नते मुअक्कदा है । इसका छोड़ना जाइज़ नहीं । औरतें घरों में अकेले अकेले तरावीह पढ़ें । मस्जिदों में न जायें । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 472 )  मसला : - तरावीह बीस रकअतें दस सलाम से पढ़ी जायें । यानी हर दो रकअत पर सलाम फेरे और हर चार रकअत पर इतनी देर बैठना मुस्तहब है जितनी देर में चार रकअतें पढ़ी हैं । और इख़्तियार है कि इतनी देर चाहे चुपका बैठा रहे । चाहे कलिमा या दुरूद शरीफ़ पढ़ता रहे । या कोई भी दुआ पढ़ता रहे । आम तौर से यह दुआ पढ़ी जाती है -- ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 474 )   मसलाः - मर्दों के लिए तरावीह जमाअत से पढ़ना सुन्नते किफाया है । यानी अगर मस्जिद में तरावीह की जमाअत न हुई तो मुहल्ले के सब लोग गुनहगार होंगे । और अगर कुछ लोगों ने मस्जिद में जमाअत से तरावीह पढ़ ली तो सब लोग बरीउज्जिम्मा हो गए । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 472 )  मसला : - पूरे महीने की तरावीह में एक बार कुरआन मजीद खत्म करना सुन्नते मुअक्कदा है और दो बार खत्म करना अफ़ज़ल है । और तीन बार खत्म करना इससे ज्या

नमाजे इस्तेख़ारा | Namaze Istikhara in hindi

Image
नमाजे इस्तेख़ारा  Third party image reference  हदीसों में आया है कि जब कोई शख्स किसी काम का इरादा करे तो दो रकअत नमाज़ नफ्ल पढ़े जिस की पहली रकअत में अल्हम्द के बाद कुल या अय्युहल् काफिरून दूसरी रकअत में अल्हम्द के बाद कुल हुवल्लाह पढ़े । फिर यह दुआ पढ़ कर बावजू किबला की तरफ मुंह करके सो रहे । दुआ के पहले और आखिर में सूरह फातिहा और दुरूद शरीफ भी पढ़े । दुआ यह है दोनों जगह अल्अम् - र की जगह अपनी जरूरत का नाम ले । जैसे पहली जगह और दूसरी जगह ( तिर्मिजी जि . 1 स . 63 व कुतुबे फिकह ) मसलाः - बेहतर यह है कि कम से कम सात मर्तबा इस्तेखारा करे । और फिर देखे जिस बात पर दिल जमे उसी में भलाई है । बाज बुजुर्गों ने फ़रमाया है कि इस्तेखारा करने में अगर ख्वाब के अन्दर सफेदी या हरियाली देखे तो अच्छा है और अगर काला और लाल देखे तो बुरा है । ( रद्दलमुहतार जि . 1 स . 461 ) 

नमाज सलातुल ---- असरार | Namaz slatul - asrar in hindi

Image
नमाज सलातुल ---- असरार  Third party image reference दुआओं की मकबूलियत और हाज़तों के पूरी होने के लिए एक मुजर्रब नमाज़ सलातुल असरार भी है । जिसको इमाम अबुल हसन नूरुद्दीन अली बिन जरीर लख्मी शतनूफी ने बहजतुल असरार में और मुल्ला अली कारी व शैख अब्दुल हक मुहद्दिस देहलवी ने हजरत गौसे आज़म रज़ियल्लाहु अन्ह से रिवायत करते हुए लिखा है । इसकी तर्कीब यह है कि मगरिब की नमाज के बाद सुन्नतें पढ़ कर दो रकअत नफ्ल पढ़े । और बेहतर यह है कि अल्हम्द के  बाद हर रकअत में ग्यारह ग्यारह मर्तबा कुल हुवल्लाह पढ़े । सलाम के बाद व अल्लाह तआला की हम्द व सना करे । फिर ग्यारह बार दुरूद शरीफ पढ़े । और ग्यारह मर्तबा यह पढ़े । फिर इराक की तरफ ग्यारह कदम चले और हर कदम पर यह पढ़े फिर हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को वसीला बना कर अल्लाह तआला से अपनी हाजत के लिए दुआ मांगे । ( अखबारुल अखियार स . 26 व नुजहतुलखातिर स . 78 ) 

नमाजे हाजत | Namaze hajat in hindi

Image
नमाजे हाजत  Third party image reference हजरत हुजैफा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु रावी हैं कि जब हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को कोई अहम मुआमला पेश आता तो आप  उसके लिए दो या चार रकअत नमाज़ पढ़ते । हदीस शरीफ में है कि पहली रकअत में सूरह फ़ातिहा और तीन बार आयतुलकुर्सी पढ़े । और बाकी तीन रकअतों में सूरह फ़ातिहा और कुल हुवल्लाह , कुल अऊजु बिरब्बिल् फलक , कुल अऊजु बि रबिऩ्नास एक एक बार पढ़े । तो यह ऐसी हैं जैसे शबे कद्र में चार रकअतें पढ़ीं । मशाइख फ़रमाते हैं कि हमने यह नमाज़ पढ़ी और हमारी हाजते पूरी हुईं । और एक हदीस में यह भी है कि जब कोई हाजत पेश आजाये तो अच्छा वुजू करके दो रकअत नमाज़ पढ़े । फिर तीन मर्तबा इस आयत को पढ़े फिर तीन बार पढ़े । फिर यह दुआ पढ़े ( तिर्मिज़ी व रद्दलमुहतार जि. 1 स. 461) इन्शाअल्लाह तआला उसकी हाजत पूरी होगी । इसी तरह हज़रत उसमान बिन हुनैफ रजियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि एक साहब जो नाबीना थे बारगाहे अकदस में हाजिर हुए और अर्ज करने लगे कि या रसूलल्लाह ! आप दुआ कीजिये कि अल्लाह तआला मुझे आफ़ियत दे । आपने इरशाद फ़रमाया कि अगर तुम चाहो तो सब्र करो और यह तुम्हा

नमाज चाश्त | Namaz chaasat in hindi

Image
नमाज चाश्त  Third party image reference चाश्त की नमाज कम से कम दो रकअत और ज्यादा से ज्यादा बारह रकअत है । हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जो शख़्स चाश्त की दो रकअतों को हमेशा पड़ता है । उसके गुनाह बख़्श दिये जायेंगे अगरचे वह समुन्द्र के झाग के बराबर हो । ( तिर्मिजी जि . 1 स . 62 - 63 ) नमाजे तहज्जुद  Third party image reference नमाज़ तहज्जुद का वक़्त इशा की नमाज़ के बाद सोकर उठे उसके बाद से सुबह सादिक तुलूअ होने के वक़्त तक है । तहज्जुद की नमाज़ कम से कम दो रकअत और ज्यादा से ज्यादा हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से आठ रकअत साबित है । हदीसों में इस नमाज़ की बहुत ज्यादा फजीलत बयान की गई है । ( सिहाहे सित्ता ) सलातुत्तस्बीह  इस नमाज़ का बे - इनतेहा सवाब है । हदीस शरीफ में है कि हुजुरे अकदस सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम ने अपने चचा हज़रत अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से फ़रमाया कि ऐ मेरे चचा ! अगर हो सके तो सलातुत्तस्बीह हर रोज़ एक बार पढ़ो और अगर रोज़ न हो सके तो हर जुमा को एक बार पढ़ो और यह भी न हो सके तो हर महीने में एक बार और यह भी न हो सके तो साल में एक बार और

नमाजे तहिय्यतुल वुजू | Namaje tahiyyatul vujoo in hindi

Image
नमाजे तहिय्यतुल  वुजू     Third party image reference  मुस्लिम शरीफ की हदीस में है कि हुजूर नबीए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जो शख्स अच्छी तरह वुजू करे और ज़ाहिर बातिन के साथ मुतवज्जेह होकर दो रकअत ( नमाज़ तहिय्यतुल वुजू ) पढ़े । उसके लिए जन्नत वाजिब हो जाती है । ( रद्दलमुहतार जि . 1 स . 458 )  नमाजे इशराक   तिर्मिज़ी शरीफ में है कि हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जो शख्स फज्र की नमाज़ जमाअत से पढ़ पर जिक्रे इलाही  करता रहे यहां तक कि सूरज बुलन्द हो जाये । फिर दो रकअत ( नमाजे इशराक ) पढ़े तो उसे पूरे एक हज और एक उमरा का सवाब मिलेगा । ( तिर्मिजी जि . 1 स . 76 )   Namaje tahiyyatul vujoo  muslim shareeph kee hadees mein hai ki hujoor nabeee kareem sallallaahu alaihi vasallam ne faramaaya ki jo shakhs achchhee tarah vujoo kare aur zaahir baatin ke saath mutavajjeh hokar do rakat ( namaaz tahiyyatul vujoo ) padhe . usake lie jannat vaajib ho jaatee hai . ( radulamuhataar ji . 1 sa . 458 )  Namaaje isharaak tirmizee shareeph mein hai k

सुन्नतों और नफ्लों का बयान | Sunnto aur nfflo ka bayaan in hindi

सुन्नतों और नफ्लों का बयान   सुन्नत की दो किस्में हैं । एक सुन्नते मुअक्कदा दूसरी सुन्नते गैर मुअक्कदा । मसला : - सुन्नते मुअक्कदा यह हैं - दो रकअत फ़ज्र की सुन्नत , फर्ज नमाज से पहले  चार रकअत जुहर की सुन्नत , फर्ज नमाज़ से पहले और दो रकअत सुन्नत बाद में । मगरिब के बाद दो रकअत सुन्नत । इशा के बाद दो रकअत सुन्नत । जुमा से पहले चार रकअत सुन्नत और जुमा के बाद चार रकअत सुन्नत । यह सब सुन्नतें मुअक्कदा हैं । यानी इनको पढ़ने की ताकीद आई है । बिला उज़्र एक मर्तबा भी तर्क करे तो मलामत के काबिल है । और इसकी आदत डाले तो फ़ासिक जहन्नम के लाइक है । और उसके लिए शफाअत से महरूम हो जाने का डर है । इन मुअक्कदा सुन्नतो को "सुननुल हुदा" भी कहते हैं । मसला : - सुन्नते गैर मुअक्कदा यह हैं - चार रकअत अस्त्र से पहले । चार रकअत इशा से पहले , इसी तरह इशा के बाद दो रकअत की बजाय चार रकअत और जुहर के फर्ज के बाद दो रकअत की बजाये चार रकअत । और जुमा की फर्ज नमाज अदा करने के बाद बजाये चार रकअत सुन्नत के छः रकअत सुन्नत । मगरिब के बाद छः रकअत "सलातुल अव्वाबीन" और दो रकअत तहिय्यतुल मस्जिद । दो