नमाज़ के वक़्तो का बयान | Namaz ke waqt ka bayan in hindi

नमाज़ के वक़्तो का बयान 

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दिन रात में कुल पांच नमाज़ें फ़र्ज़ हैं - फ़ज्र , जुहर , अस्र , मगरिब , इशा । इन पांचों नमाजों का अल्लाह तआला की तरफ़ से वक़्त मुक़र्रर है । और जिस नमाज़ का जो वक़्त मुक़र्रर है । उस नमाज़ को उसी वक़्त में पढ़ना फर्ज़ है । वक़्त निकल जाने के बाद नमाज़ क़ज़ा हो जाती है । अब हम नमाज़ के वक़्तों को बयान करते हैं कि किस नमाज़ का वक्त कब से शुरू होता है और कब खत्म हो जाता है । 

फज्र का वक़्तः - सुबह सादिक से शुरू होकर सूरज निकलने तक है । इस दर्मियान में जब चाहें फज़्र पढ़ लें । लेकिन मुस्तहब यह है कि फ़ज़्र की नमाज़ इतना उजाला हो जाने के बाद पढ़ें कि मस्जिद के नमाज़ी एक दूसरे को देख कर पहचान लें । 

सुबह सादिकः - एक रौशनी है जो सूरज निकलने से पहले आसमान के परबी किनारों में जाहिर होती है । यहां तक कि धीरे धीरे यह रौशनी पूरे आसमान में फैल जाती है । और उजाला हो जाता है । सुबह सादिक की रौशनी जाहिर होते ही सहरी का वक़्त खत्म और फज्र की नमाज़ का वक़्त शुरू हो जाता है । सुबह सादिक जाड़ों में तकरीबन सवा घन्टा और गर्मियों में लगभग डेढ़ घन्टा सूरज निकलने से पहले जाहिर होती है ।

ज़ुहर का वक़्त - सूरज ढलने के बाद शुरू होता है । और ठीक दोपहर के वक़्त किसी चीज़ का जितना साया होता है उस साया के इलावा उसी चीज़ का साया दो गुना होजाये तो जुहर का वक़्त खत्म हो जाता है । ज़ुहर के वक्त में मुस्तहब यह है कि जाड़ों में अव्वल वक्त और गर्मियों में दे करके नमाजे जुहर पढ़ें । 

फ़ाइदा : - सूरज ढलने और दोपहर के साया के इलावा साया दो गुना होने की पहचान यह है कि बराबर जमीन पर एक हमवार लकड़ी बिल्कुल सीधी इस तरह गाड़ दें कि पूरब पश्चिम या उत्तर दक्षिण को ज़रा भी झुकी न हो । अब ख़्याल रखो कि जितना सूरज ऊँचा होता जाएगा उस लकड़ी का साया कम और छोटा होता जाएगा । जब साया कम होना रुक जाये तो समझ लो कि ठीक दोपहर हो गया और उस वक़्त में उस लकड़ी का जितना बड़ा साया हो उसको नाप कर ध्यान में रखो । उसके बाद ज्यों ही साया बढ़ने लगे तो समझ लो कि सूरज ढल गया और ज़ुहर का वक़्त शुरू हो गया और जब साया बढ़ते बढ़ते इतना बड़ा हो जाये कि दोपहर वाले साया को निकाल कर उस लकड़ी का साया उस लकड़ी से दोगुना बड़ा होजाये तो समझ लो कि ज़ुहर का वक़्त निकल गया । और अस्र का वक़्त शुरू हो गया । जुमा का वक़्त वही है जो ज़ुहर का वक़्त है । 

अ़स्र का वक़्तः - जुहर का वक्त खत्म होते ही अस्र का वक़्त शुरू हो जाता है और सूरज डूबने तक रहता है । जाड़ों में अस्र का वक़्त तकरीबन डेढ घन्टे लम्बा रहता है और गर्मियों में करीब करीब दो घन्टे ( कुछ कम ज्यादा मुख्तलिफ तारीखों में ) रहता है । अस्र की नमाज़ में हमेशा देर मुस्तहब है । मगर न इतनी देर कि सूरज की टिकिया में जर्दी आ जाये । 

मग़रिब का वक़्त - सूरज डूबने के बाद से मगरिब का वक़्त शुरू होता है और शफ़क़ ग़ाइब होने तक रहता है । शफ़क़ से मुराद वह सफेदी है जो सूरज डूबने की लाली के बाद पश्चिम में सुबह सादिक की सफेदी की तरह । उत्तर दक्खिन में फैली रहती है । मगरिब के वक़्त की लम्बाई हमारे दयार ( इलाका ) में कम से कम सवा घन्टा और ज्यादा से ज्यादा डेढ घन्टा तकरीबन हुआ करती है । और हर दिन जितना लम्बा फज्र का वक़्त होता है उतना ही लम्बा मगरिब का वक़्त भी होता है ।

इशा का वक़्तः - शफ़क़ की सफ़ेदी ग़ाइब होने के बाद से सुबह सादिक की सफेदी जाहिर होने तक है लेकिन इशा में तेहाई रात तक देर करनी मुस्तहब है । और आधी रात तक मुबाह है । और आधी रात के बाद इशा की । नमाज़ पढ़नी मकरूह है । 

नमाज़े वित्र का वक़्तः - वही है जो नमाज़े इशा का वक़्त है । लेकिन इशा पढ़ने से पहले वित्र नहीं पढ़ी जा सकती क्योंकि इशा और वित्र में तर्तीब फ़र्ज़ है । यानी ज़रूरी है कि पहले इशा पढ़ ली जाये । उसके बाद वित्र पढ़ी जाये । अगर किसी ने क़स्दन इशा की नमाज़ से पहले वित्र पढ़ ली तो वित्र अदा नहीं होगी । बल्कि इशा पढ़ने के बाद फिर वित्र पढ़नी पड़ेगी । हां अगर भूल कर वित्र इशा से पहले पढ़ ली या बाद को मालूम हुआ कि इशा बगैर वुज़ू के पढ़ी थी और वित्र वुज़ू के साथ पढ़ी थी तो वुज़ू करके इशा की नमाज़ पढ़े । लेकिन वित्र जो पहले पढ़ ली है वह अदा हो गई । उसको दोहराना जरूरी नहीं । 

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