अज़ान का बयान | Aazaan ka bayaan in hindi

अज़ान का बयान 

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अज़ान के फ़ज़ाइल और उसके सवाब के बयान में बहुत सी हदीसें आई हैं ।  तिर्मिज़ी व अबू दाऊद व इब्ने माजा की हदीस है कि जो शख्स सात बरस तक सवाब की नीयत से अज़ान पढ़ेगा उसके लिए जहन्नम से नजात लिख दी जाएगी । ( मिश्कात जि . 1 स . 65 बाबुल अज़ान ) अज़ान इस्लाम का निशान है । अगर किसी शहर या गाँव के लोग अज़ान पढ़ना छोड़ दें तो बादशाहे इस्लाम उनको मजबूर करके अज़ान पढ़वाये और इसपर भी लोग न मानें तो उनसे जिहाद करे । ( क़ाज़ी ख़ान ) पांचों नमाज़ों और जुमा को मस्जिद में जमाअत के साथ अदा करने के लिए अज़ान पढ़ना सुन्नते मुअक्कदा है और इसका हुक्म मिस्ले वाजिब के है । यानी अगर अजान न पढ़ी गई तो वहां के सब लोग गुनहगार होंगे । 

मसला : - मस्जिद में बिला अज़ान व इकामत के जमाअत से नमाज़ पढ़नी मकरूह है । 

मसला : - घर में अगर कोई शख्स नमाज पढ़े और अजान न पढ़े तो कोई हरज नहीं कि वहां की मस्जिद की अजान उसके लिए काफी है । मसला : - वक़्त होने के बाद अज़ान पढ़ी जाये । अगर वक़्त से पहले अज़ान हो गई तो वक़्त होने पर दोबारा अजान पढ़ी जाये । 

मसला : - अज़ान के दर्मियान में बात चीत मना है । अगर मुअज़्ज़िन ने अज़ान के बीच में कोई बात कर ली तो फिर से अजान कहे । ( सगीरी ) 

मसला : - हर अज़ान यहां तक कि खुतबए जुमा की अज़ान भी मस्जिद के बाहर कही जाये । मस्जिद के अन्दर अज़ान न पढ़ी जाये । ( खुलासा व आलमगीरी व काजी खान ) है । 

मसला : - जब अज़ान हो तो इतनी देर के लिए सलाम कलाम और सलाम का जवाब और हर काम मौक़ूफ करदे । यहां तक कि कुरआन शरीफ़ की  तिलावत में अज़ान की आवाज़ आये तो तिलावत रोक दे । और अज़ान को गौर से सुने और जवाब दे । यही इकामत में भी करे । ( दुरै मुख्तार व आलमगीरी ) 

मसला : - जो शख़्स अज़ान के वक़्त बातों में मशग़ूल रहे उस का मआ़ज़ल्लाह ख़ात्मा बुरा होने का ख़ौफ़ है । ( फ़तावा रज़विया )

मसलाः - फ़र्ज़ नमाज़ों और जुमा की जमाअ़तों के इलावा दूसरे मौकों पर भी अज़ान कहीं जा सकती है । जैसे पैदा होने वाले बच्चे के दाहिने कान में अज़ान और बायें कान में इक़ामत । इसी तरह मग़मूम के कान में , मिर्गी वाले और ग़ज़बनाक और बद मिज़ाज आदमी और जानवर के कान में , जंग और आग लगने के वक़्त , जुनून और शैतानों की सरकशी के वक़्त , जंगल में रास्ता न मिलने के वक़्त , मय्यत को दफ़न करने के बाद , इन सूरतों में अज़ान पढ़ना मुस्तहब है । ( बहारे शरीअत , रद्दुल मुहतार जि 1 स . 258 ) 

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