हैज़ व निफास के अहकाम | Haiz wa nifas ke ahkam in hindi part 2

हैज़ व निफास के अहकामः - हैज़ व निफ़ास की हालत में नमाज़ पढ़ना और रोज़ा रखना हराम है । इन दोनों में नमाज़ें माफ़ हैं । उनकी क़ज़ा भी नहीं । अलबत्ता रोज़ों की क़ज़ा दूसरे दिनों में रखना फ़र्ज़ है । और हैज़ व निफ़ास वाली औरत को क़ुरआन मजीद पढ़ना हराम है । ख़्वाह देख कर पढ़े या ज़बानी पढ़े । यूं ही क़ुरआन मजीद का छूना भी हराम है । हां अगर जुज़दान में  क़ुरआन मजीद हो तो उस जुज़दान को छूने में कोई हरज नहीं । ( आलमगीरी जि . 1 स . 36 )

 padhay haiz wa nifas wa janabat ka bayan part 1

  

मसलाः - क़ुरआन मजीद पढ़ने के इलावा दूसरे तमाम वज़ीफ़े कलिमा शरीफ , दुरूद शरीफ , वग़ैरह हैज़ व निफ़ास की हालत में औरत बिला कराहत पढ़ सकती । बल्कि मुस्तहब है कि नमाज़ों के औक़ात में वुज़ू करके इतनी देर तक दुरूद शरीफ़ और दूसरे वज़ीफ़े पढ़ लिया करे जितनी देर में नमाज़ पढ़ा करती थी , ताकि आदत बाकी रहे । ( आलमगीरी जि . 1 स . 36 )

मसला : - हैज़ व निफ़ास की हालत में हमबिस्तरी यानी जिमाअ़ हराम है । बल्कि इस हालत में नाफ़ से घुटने तक औरत के बदन को मर्द अपने किसी उज़्व से न छूए कि यह भी हराम है । हां अलबत्ता नाफ़ से ऊपर और घुटने से नीचे इस हालत में औरत के बदन को छूना या बोसा लेना जाइज़ है । ( आलमगीरी जि . 1 स . 37 ) 

 मसला : - हैज़ व निफ़ास की हालत में औरत को मस्जिद में जाना हराम है । हां अगर चोर या दरिन्दे से डर कर या किसी भी शदीद मजबूरी से मजबूर होकर मस्जिद में चली गई तो जाइज़ है । मगर उसको चाहिए कि तयम्मुम करके मस्जिद में जाये । मसला : - हैज़ व निफ़ास वाली औरत अगर ईदगाह में दाख़िल हो जाये तो कोई हरज नहीं ।

मसला : - हैज़ व निफ़ास की हालत में अगर मस्जिद से बाहर रह कर और हाथ बढ़ा कर मस्जिद से कोई चीज़ उठा ले या मस्जिद में कोई चीज़ रख दे तो जाइज़ है ।

मसला : - हैज़ व निफ़ास वाली को ख़ानए कअ़बा के अन्दर जाना और उसका तवाफ़ करना अगरचे मस्जिदे हराम के बाहर से हो हराम है ।  ( आलमगीरी जि . 1 स . 36)

मसला : - हैज़ व निफ़ास की हालत में बीवी को अपने बिस्तर पर सुलाने में ग़लबए शह्वत या अपने को क़ाबू में न रखने का अन्देशा हो तो शौहर के लिए लाज़िम है कि बीवी को अपने बिस्तर पर न सुलाये बल्कि अगर गुमान गालिब हो कि ग़ालिब शह्वत पर क़ाबू न रख सकेगा तो शौहर को ऐसी हालत में बीवी को अपने साथ सुलाना हराम और गुनाह है ।

मसला : - हैज़ व निफ़ास की हालत में बीवी के साथ हमबिस्तरी को हलाल समझना कुफ्र है । और हराम समझते हुए कर लिया तो सख़्त गुनहगार हुआ । उस पर तौबा करना फ़र्ज है । और अगर शुरू हैज़ व निफ़ास में ऐसा कर लिया है तो एक दीनार और अगर करीब ख़त्म के किया तो आधा दीनार ख़ैरात करना मुस्तहब है । ताकि ख़ुदा के ग़ज़ब से अमान पाये । ( आलमगीरी जि . 1 स . 37 वगैरह )

मसला : - रोज़े की हालत में अगर हैज़ व निफ़ास शुरू हो गया तो वह रोज़ा जाता रहा | उसकी क़ज़ा रखे । फ़र्ज़ था तो क़ज़ा फ़र्ज़ है और नफ़्ल था तो क़ज़ा वाजिब है ।

मसला : - निफ़ास की हालत में औरत को ज़च्चा ख़ाना से निकलना जाइज़ है । यूं ही हैज़ व निफ़ास वाली औरत को साथ खिलाने और उसका जूठा खाने में कोई हरज नहीं । हिन्दुस्तान में बाज़ जगह जाहिल औरतें हैज़  निफ़ास वाली औरतों के बर्तन अलग कर देती हैं । बल्कि उन बर्तनों को और हैज़ वाली औरतों को नजिस जानती हैं । याद रखो कि ये सब हिन्दुओं की रस्में हैं । ऐसी बेहूदा रस्मों से मुसलमान औरतों , मर्दों को बचना लाजिम़ है । अक्सर औरतों में रिवाज है कि जब तक चिल्ला पूरा न हो जाये अगरचे निफ़ास का ख़ून बन्द हो चुका हो वह न नमाज़ पढ़ती हैं न अपने को नमाज़ के काबिल समझती हैं । यह भी महज़ जहालत है । शरीअ़त का हुक्म यह है कि जैसे ही निफ़ास का ख़ून बन्द हो उसी वक्त से नहा कर नमाज़ शुरू कर दें । और अगर नहाने से बीमारी का अन्देशा हो तो तयम्मुम करके नमाज़ पढ़े । नमाज़ हरगिज़ हरगिज़ न छोड़ें ।

मसला : - हैज़ अगर पूरे दस दिन पर ख़त्म हुआ तो पाक होते ही उससे जिमाअ़ करना जाइज़ हैं , अगरचे अब तक ग़ुस्ल न किया हो । लेकिन मुस्तहब यह हैं कि नहाने के बाद सोहबत करे । ( आलमारी जि , 1 स . 37 )

मसला : - अगर दस दिन से कम में हैज़ बन्द हो गया तो जब तक ग़ुस्ल न करले या वह वक्ते नमाज़ जिस में पाक हुई न ग़ुजर जाये सोहबत करना जाइज़ नहीं | ( आलमगीरी )

मसला : - हैज़ व निफ़ास की हालत में सज्दए तिलावत भी हराम है । और सज्दे की आयत सुनने से उस पर सज्दा वाजिब नहीं ।

मसलाः - रात को सोते वक्त औरत पाक थी और सुबह को सोकर उठी तो हैं का असर देखा तो उसी वक्त से हैज़ का हुक्म दिया जाएगा । रात ही से हाइज़ा नहीं मानी जाएगी ।

मसलाः - हैज़ वाली सुबह सोकर उठी और गद्दी पर कोई निशान हैज़ का नहीं तो रात ही से पाक मानी जाएगी । 

इस्तेहाज़ा के अहकामः - इस्तेहाज़ा में न नमाज़ माफ़ है न रोज़ा , न एसी औरत से सोहबत हराम इस्तेहाज़ा वाली औरत नमाज़ भी पढ़ेगी रोज़ा भी रखेगी । कअ़बा में दाख़िल भी होगी । तवाफ़े कअ़बा भी करेगी । क़ुरआन शरीफ़ की तिलावत भी करेगी । वुज़ू करके क़ुरआन शरीफ़ को भी हाथ लगाएगी । और इसी हालत में शौहर उससे हमबिस्तरी भी करेगा । ( आलमगीरी जि . 1स.37 )

जुनुब के अहकाम : - ऐसे मर्द व औरत को जिन पर ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो गया जुनुब ' कहते हैं और उस नापाकी की हालत को जनाबत कहते हैं । जुनुब चाहे मर्द हो या औरत जब तक ग़ुस्ल न करे वह मस्जिद में दाख़िल नहीं हो सकता । न कुरआन शरीफ पढ़ सकता है न कुरआन में देख कर तिलावत कर सकता है , न ज़बानी पढ़ सकता है , न कुरआन मजीद को छू सकता है , न कअबा में । दाखिल हो सकता है , न कअबा का तवाफ़ कर सकता है । 

मसला : - जुनुब को साथ खिलाने , उसका जूठा खाने , उसके साथ ३ सलाम व मुसाफ़हा और मुआनका करने में कोई हरज नहीं । ( अबू दाऊद जि . 6 स . 39 ) 

मसला : - जुनुब को चाहिए कि जल्द से जल्द गुस्ल करले । क्योंकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है कि रहमत के फ़रिश्ते उस घर में नहीं जाते जिस घर में तस्वीर और कुत्ता और जुनुब हो ।  ( अबू दाऊद जि , 1 स . 34 ) इसी तरह एक हदीस में यह भी आया है कि फरिश्तेतीन शख़्सो से करीब नहीं होते - - एक काफ़िर का मुर्दा , दूसरे खलूक ( औरतों की रंगीन खुश्बू) इस्तेमाल करने वाला , तीसरे जुनुब आदमी मगर यह कि वुज़ू करले ।  ( मिश्कात जि. 1 स. 50 )

मसला : - हैज़ व निफास वाली औरत या ऐसे मर्द औरत जिन पर ग़ुस्ल फर्ज है , अगर यह लोग कुरआन शरीफ की तालीम दें तो उनको लाज़िम हैं कि कुरआन मजीद के एक एक लफ्ज़ पर सांस तोड़ तोड़ कर पढ़ायें | मसलन इस तरह पढ़ायें अल्हम्द पढ़ कर सांस तोड़ दें फिर लिल्लाह पढ़ कर सास तोड़ दें । फिर रब्बिल् आलमीन पढ़ें । एक सांस में आयत लगातार न पढ़ें । और कुरआन शरीफ के अलफाज को हिज्जे कराने में भी कोई हरज नहीं ।

मसला : - कुरआन मजीद के इलावा और दूसरे वजीफे कलिमा शरीफ व दुरूद शरीफ़ वगैरह को पढ़ना जुनुब के लिए बिला कराहत जाइज़ बलिक मुस्तहब है जैसे कि हैज व निफास वाली औरत के लिए कुरआन शरीफ के इलावा दूसरे तमाम अज़कार व वजाइफ पढ़ना जाइज व दुरुस्त बल्कि मुस्तहब है । ( आलमगीरी जि . 1 स . 36 )

मअजूर का बयान : - जिस शख्स को कोई ऐसी बीमारी हो जैसे पेशाब के क़तरे टप़कने या दस्त आने , या इस्तेहाजा का खून आने के अमराज कि एक नमाज़ का पूरा वक्त गुज़र गया । और वह वुजू के साथ नमाजे फर्ज अदा न कर सका तो ऐसे शख्स को शरीअत में मअजूर कहते हैं । ऐसे लोगों के लिए शरीअत का यह हुक्म है कि जब किसी नमाज का वक्त आ जाये तो मअ़जूर लोग वुजू करें और उसी वुजू से जितनी नमाजे चाहें पढ़ते रहें । उस दर्मियान में अगरचे बार बार कतरा वगैरह आता रहे । मगर उन लोगों का वुजू उस वक्त तक नहीं टूटेगा जब तक कि उस नमाज़ का वक्त बाकी रहे । और जैसे ही नमाज़ का वक्त खत्म हुआ उन लोगों का वुजू टूट जाएगा । और दूसरी नमाज़ के लिए फिर दूसरा वुजू करना पड़ेगा । ( आलमगीरी जि , 1 स . 38 )

मसला : - जब कोई शख्स शरीअत में मअ़जूर मान लिया गया तो जब तक हर नमाज़ के वक्त में एक बार भी उसका उज्र पाया जाता रहेगा वह मअजूर ही रहेगा । जब उसको इतनी शिफा हासिल हो जाये कि एक नमाज का पूरा वक्त गुजर जाये और उसको एक मर्तबा भी कतरा वगैरह न आये तो अब यह शख्स मअजूर नहीं माना जाएगा । ( आलमगीरी जि . 1 स . 38 ) 

मसला : - मअजूर का वुजू उस चीज से नहीं जाता जिस की वजह से मअजूर है । लेकिन अगर कोई वुजू तोड़ने वाली दूसरी चीज़ पाई गई तो उस का वुजू जाता रहेगा । जैसे किसी को कतरे का मर्ज़ है और वह मअजूर मान लिया गया तो नमाज़ के पूरे वक्त में क़तरा आने से तो उसका वुजू नहीं टूटेगा , लेकिन हवा निकलने से उसका वुजू टूटे  जाएगा । मसला : - अगर खड़े होकर नमाज़ पढ़ने में कतरा आ जाता है और बैठ कर नमाज़ पढ़ने में कतरा नहीं आता तो उस पर फर्ज़ है कि नमाज़ बैठ कर पढ़ा करे और वह मअजूर नहीं शुमार किया जाएगा । 

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