अफ़आले नमाज की किस्में | Afaale namaz ki kisme in hindi

अफ़आले नमाज की किस्में 

  Third party image reference

नमाज़ पढ़ने का जो तरीका बयान किया गया है । उस में जिन जिन कामों का जिक्र किया गया है , उनमें से बाज़ चीजें फ़र्ज़ हैं कि उनके बगैर नमाज होगी ही नहीं । बाज वाजिब हैं कि अगर कस्दन उनको छोड़ दिया जाये । तो गुनाह भी होगा और नमाज़ को भी दुहराना पड़ेगा । और अगर भूल कर उनको छोड़ा तो सज्दए सह्व करना वाजिब होगा । और बाज़ सुन्नते मूअक्कदा हैं कि उनको छोड़ने की आदत गुनाह है । और बाज़ मुस्तहब हैं कि उनको करें तो सवाब और न करें तो कोई गुनाह नहीं । अब हम उन बातों की कुछ वजाहत करते है । उनको गौर से पढ़ कर अच्छी तरह याद कर लो ।

फ़राइजे नमाजः - सात चीज़े नमाज में फ़र्ज़ हैं कि अगर उनमें से किसी एक को भी छोड़ दिया तो नमाज़ होगी ही नहीं ।

 ( 1 ) तकबीरे तहरीमा

 ( 2 ) कियाम

 ( 3 ) किरअत 

( 4 ) रुकूअ

 ( 5 ) सज्दा 

( 6 ) कअदा अख़ीरा

 ( 7 ) कोई काम करके मसलन सलाम या कलाम करके नमाज़ से निकलना । तकबीरे तहरीमा का यह मतलब है कि अल्लाहु अक्बर कह कर नमाज शुरू करना । नमाज़ में तो बहुत मर्तबा अल्लाहु अक्बर कहा जाता है मगर शुरू नमाज में पहली मर्तबा जो अल्लाहु अक्बर कहते हैं , उसका नाम तकबीरे तहरीमा है , यह फ़र्ज़ है । इसको अगर छोड़ दिया तो नमाज़ होगी ही नहीं । 

मसला : - कियाम फ़र्ज़ होने का मतलब यह है कि खड़े होकर नमाज़ पढ़ना जरूरी है । तो अगर किसी मर्द या औरत ने बगैर उज़्र के बैठ कर नमाज पढ़ी तो उसकी नमाज़ अदा नहीं हुई । हां नफ़्ल नमाज़ को बिला उज़्र के भी बैठ कर पढ़े तो यह जाइज़ है ।

मसला : - किरअत फ़र्ज़ होने का मतलब यह है कि फ़र्ज़ की दो रकअतों और वित्र व नवाफ़िल और सुन्नतों की हर हर रकअत में कुरआन शरीफ़ पढ़ना ज़रूरी है तो अगर किसी ने इन रकअतों में कुरआन शरीफ़ नहीं पढ़ा तो उसकी नमाज़ नहीं होगी ।

मसला : - रुकूअ काअदना दर्जा यह है कि इतना झुकना कि हाथ बढ़ायें तो घुटने तक पहुंच जायें और पूरा रुकूअ यह है कि इतना झुके कि पीठ सीधी बिछा दे । 

मसला : - सज्दे की हकीकत यह है कि माथा जमीन पर जमा हो और कम से कम पाँव की एक उंगली का पेट ज़मीन से लगा हो तो अगर किसी ने इस तरह सज्दा किया कि दोनों पाँव जमीन से उठे रहे या सिर्फ उंगली की नोक जमीन से लगी रही तो नमाज़ न होगी । ( दुरै मुख्तार , फुतावा रज़विया व बहारे शरीअत ) एक उंगली के पेट का सज्दे में जमीन से लगना तो फ़र्ज़ है । मगर दोनों पाँव की तीन तीन उंगलियों के पेट का जमीन से लगना वाजिब है और  दोनों पाँव की दसों उंगलियों का पेट सज्दे में जमीन से लगा होना सुन्नत है । 

मसला : - नमाज़ की रकअतों को पूरी कर लेने के बाद पूरी अत्तहिय्यात पढ़ने की मिकदार बैठना फ़र्ज़ है । और इसी का नाम कअदा अखीरा है ।

  मसला : - कअदा अखीरा के बाद अपने कस्द व इरादा और किसी अमल से नमाज़ खत्म करे देना । चाहे सलाम से हो या किसी दूसरे अ़मल से यह भी नमाज़ के फराइज़ में से हैं । लेकिन सलाम के इलावा अगर कोई दूसरा काम करके नमाज़ को ख़त्म किया तो अगरचे नमाज़ का फ़र्ज़ तो अदा हो गया लेकिन उस नमाज़ को दोबारा पढ़ना वाजिब हैं ।

नमाज़ के वाजिबातः - नमाज़ में ये चीज़ें वाजिब हैं -

( 1 ) तबकीरे तहरीमा में लफ़्ज़ अल्लाहु अक़्बर होना 

 ( 2 ) अल्हम्द पढ़ना

 ( 3 ) फ़र्ज़ की दो पहली रकअतों में और सुन्नत व नफ़्ल और वित्र की हर रकअत में अल्हम्द के साथ कोई सूरह या तीन छोटी आयतों को मिलाना ।

 ( 4 ) फ़र्ज़ नमाजों की दो पहली रकअतों में किरअत करना ।

 ( 5 ) अल्हम्द का सूरह से पहले होना 

( 6 ) हर रकअत में सूरह से पहले एक ही बार अल्हम्द पढ़ना

 ( 7 ) अल्हम्द और सूरह के दर्मियान आमीन और बिस्मिल्लाह के सिवा कुछ और न पढ़ना 

( 8 ) किरअत के बाद फौरन ही रुकूअ करना

( 9 ) सज्दे में दोनों पाँव की तीन तीन उंगलियों का पेट जमीन पर लगना ।

 ( 10 ) दोनों सज्दों के दर्मियान किसी रुक्न का फासिल न होना

 ( 11 ) तअदीले अरकान यानी रुकूअ सुजूद और कौमा जलसा में कम से कम एक बार सुबहानल्लाह कहने के बराबर ठहरना

 ( 12 ) जलसा यानी दोनों सज्दों के दर्मियान सीधा बैठना 

( 13 ) कौमा यानी रुकूअत से सीधा खड़ा हो जाना 

( 14 ) कअदए ऊला अगरचे नफ़्ल नमाज़ हो 

( 15 ) फ़र्ज़ और वित्र और मुअक्कदा सुन्नतों के कअदए ऊला में अत्तहिय्यात से ज्यादा कुछ न पढ़ना

 ( 16 ) हर कअदा में पूरा तशह्हुद पढ़ना

 ( 17 ) लफ्ज़ अस्सलाम दो बार कहना 

( 18 ) वित्र में दुआए कुनूत पढ़ना

 ( 19 ) वित्र में कुनूत की तकबीर

 ( 20 ) ईदैन की छ : जाइद तकबीरें

 ( 21 ) ईदैन में दूसरी रकअत के रुकूअ की तकबीर

 ( 22 ) और उस तकबीर के लिए लफ्ज़ अल्लाहु अक्बर कहना

 ( 23 ) हर जहरी नमाज में इमाम को बुलन्द आवाज से किरअत करना 

( 24 ) और गैर जहरी नमाजों में आहिस्ता किरअत करना 

( 25 ) हर फ़र्ज़ व वाजिब का उसकी जगह पर अदा होना

 ( 26 ) हर रकअत में एक ही रुकूअ होना 

( 27 ) हर रकअत में दो ही सज्दा होना

 ( 28 ) दूसरी रकअत पूरी होने से पहले कअदा न करना 

( 29 ) और चार रकअत वाली नमाजों में तीसरी रकअत पर कअदा न करना 

( 30 ) आयते सज्दा पढ़ी तो संज्दए तिलावत करना 

( 31 ) सह्व हुआ तो सज्दए सह्व करना

 ( 32 ) दो फ़र्ज़ या दो वाजिब व फ़र्ज़ के दर्मियान तीन मर्तबा सुबहानल्लाह कहने के बराबर वक्फा न होना 

( 33 ) इमाम जब किरअत करे बुलन्द आवाज से हो या आहिस्ता उस वक़्त में मुकतदी का चुप रहना 

( 34 ) किरअत के सिवा तमाम वाजिबात में मुकदीको इमाम की पैरवी करनी ।

नमाज़ की सुन्नतें : - नमाज़ में जो चीजें सुन्नत हैं उनका हुक्म यह है कि उनको कस्दन न छोड़ा जाये । और अगर गलती से छूट जाये तो न सज्दए सह्व की जरूरत है , न नमाज़ दुहराने की , लेकिन अगर दोहरा ले तो अच्छा है । क्योंकि नमाज़ की किसी सुन्नत का छोड़ देने से नमाज़ के सवाब में कमी हो जाती है । नमाज़ की सुन्नतें यह है - 

( 1 ) तकबीरे तहरीमा के लिए हाथ उठाना 

( 2 ) हाथों की उंगलियों को अपने हाल पर छोड़ देना यानी न बिल्कुल मिलाये न खुली रखे बल्कि अपने हाल पर छोड़ दे । 

( 3 ) ब - वक़्ते तकबीर सर न झुकाना

 ( 4 ) हथेलियों और उंगलियों के पेट का किबला रू होना ।

 ( 5 ) तकबीर कहने से पहले हाथ उठाना , इसी तरह कुनूत और ईदैन की तकबीरा में भी ।

 ( 6 ) कानों तक हाथ ले जाने के बाद तकबीर कहना 

( 7 ) औरत को सिर्फ मूंढों तक हाथ उठाना 

( 8 ) इमाम का अल्लहु अक्बर सनिअल्लाहु लमिन हमि - दः और सलाम बुलन्द आवाज़ से कहना 

( 9 ) तकबीर के बाद हाथ लटकाये बगैर बांध लेना

 ( 10 ) सना व तअव्वुज व बिस्मिल्लाह पढ़ना 

( 11 ) आमीन कहना है 

( 12 ) इन सब का अहिस्ता होना

 ( 13 ) पहले सना फिर तअव्वज , फिर  बिस्मिल्लाह और हर एक के बाद दूसरे को फ़ौरन पढ़ना 

( 14 ) रुकूअ में तीन बार सुबहा--न रब्बियल् अजीम कहना और 

( 15 ) घुटनों को हाथों से पकड़ना और

 ( 16 ) उंगलियों को खूब खुली रखना 

( 17 ) औरत को घुटने पर हाथ रखना और उंगलियों को कुशादा न रखना

 ( 18 ) हालते रुकूअ में टांगें सीधी होना 

( 19 ) रुकूअ के लिए अल्लाहु अक्बर कहना

 ( 20 ) रुकूअ में पीठ खूब बिछी रखना 

( 21 ) रुकूअ से उठने पर हाथ लटका हुआ छोड़ देना

 ( 22 ) रुकूअ से उठने में इमाम को समिअल्लाहु लिमन् हमिदः कहना

 ( 23 ) मुक़तदी को रब्बना ल - लकल् हम्द कहना और

 ( 24 ) अकेले नमाज़ पढ़ने वाले को दोनों कहना

 ( 25 ) सज्दे के लिए और सज्दे से उठने के लिए अल्लाहू अक्बर कहना 

( 26 ) सज्दे में कम से कम तीन बार सुबहा---न रब्बियल् अअ्ला कहना

 ( 27 ) सज्दा करने के लिए पहले घुटना फिर हाथ फिर नाक फिर माथा जमीन पर रखना 

( 28 ) और सज्दे से उठने के लिए पहले माथा फिर नाक , फिर घुटना जमीन से उठाना 

( 29 ) सज्दे में बाजू का करवटों से और पेट का रानों से अलग रहना 

( 30 ) सज्दे की हालत में कलाईयों को जमीन पर न बिछाना

 ( 31 ) औरत को सज्दे में अपने बाजू को करवटों से , पेट को रान से , रान को पिन्डलियों से , और पिन्डलियों को जमीन से , मिला देना 

( 32 ) दोनों सज्दों के दर्मियान मिस्ल तशह्हुद के बैठना 

( 33 ) और हाथों को रानों पर रखना 

( 34 ) सज्दे में हाथों की उंगलियों का किबला रू होना और मिली हुई होना 

( 35 ) और पाँव की दसों उंगलियों के पेट का जमीन पर लगना 

( 36 ) दूसरी रकअत के लिए पंजों के बल घुटनों पर हाथ रख कर खड़ा होना

( 37 ) कअदा में बायां पैर बिछा कर दोनों सुरीन उस पर रख कर बैठना

( 38 ) दाहिना कदम खड़ा रखना और 

( 39 ) दाहिने कदम की उंगलियों को किबला रुख करना

( 40 ) औरत को दोनों पाँव दाहिनी तरफ निकाल कर बायें सुरीन पर बैठना

( 41 ) दायाँ हाथ दाहिनी रान पर और 

( 42 ) बायाँ हाथ बाईं रान पर रखना और

( 43 ) उंगलियों को अपनी हालत पर छोड़ देना 

( 44 ) कलिमए शहादत पर कलिमा की उंगली से इशारा करना 

( 45 ) कअदा अखीरा में अत्तहिय्यात के बाद दुरूद शरीफ और दुआए मासूरा पढ़ना ।

नमाज के मुस्तहब्बातः - 

( 1 ) हालते कयाम में सज्दे की जगह पर नज़र रखना 

( 2 ) रुकूअ में कदम की पुश्त पर देखना 

( 3 ) सज्दे में नाक पर नज़र रखना 

( 4 ) कअदा में सीने पर नजर जमाना 

( 5 ) पहले सलाम में दाहिने शाने को देखना 

( 6 ) दूसरे सलाम में बायें शाने पर नज़र करना

( 7 ) जमाही आये में तो मुंह बन्द किये रहना और उससे जमाही न रुके तो होंट दांत के नीचे दबाये  और इससे भी न रुके तो कयाम की हालत में दाहिने हाथ की पुश्त से मुंह ढांक ले और कयाम के इलावा दूसरी हालतों में बायें हाथ की पुश्त से । जमाही रोकने का मुजर्रब तरीका यह है कि दिल में ख्याल करे कि अम्बिया अलैहिमुस्सलाम को जमाही नहीं आती थी । दिल में यह ख्याल लाते ही जमाही का आना बन्द हो जाएगा । 

( 8 ) मर्द के लिए तकबीर तहरीमा के वक़्त  हाथ कपड़े से बाहर निकालना

( 9 ) औरत के लिए कपड़े के अन्दर बेहतर है 

( 10 ) जहां तक मुमकिन हो खांसी को रोकना 

( 11 ) जब मुकब्बिर हय्य अलल्  फलाह कहे तो इमाम व मुकतदी का खड़ा हो जाना

 ( 12 ) जब मुकब्बिर कद् का - मतिस्सलात कहे तो नमाज़ शुरू कर सकता है मगर बेहतर यह है कि इकामत पूरी हो जाने पर नमाज शुरू करे

 ( 13 ) दोनों पंजों के दर्मियान चार अंगुल का फासला होना 

( 14 ) मुक़तदी को इमाम के साथ शुरू करना 

( 15 ) सज्दा जमीन पर बिला कुछ बिछाये हुए करना । 

Comments

Popular posts from this blog

नमाज़ पढ़ने का तरीका | Namaz padhne ka tarika in hindi

वित्र की नमाज़ | witr ki namaz in hindi

हैज़ व निफास के अहकाम | Haiz wa nifas ke ahkam in hindi part 2