इस्तिन्जा का बयान | Istinza ka bayaan in hindi

 इस्तिन्जा का बयान 

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जब इस्तिन्जा खाना में दाखिल होना चाहे तो पढ़ कर पहले बाया कदम रखे और निकलते वक्त पहले दाहिना पाँव निकाले और गुफरा - न - क पढ़े । ( तिर्मिजी शरीफ़ जि . 1 स . 3 ) पेशाब के बाद इस्तिन्जा का यह तरीका है कि पहले पाक मिट्टी या पत्थर या फटे पुराने कपड़े लेकर पेशाब की जगह को सुखा ले और अगर कतरा आने का शुबहा हो तो कुछ टहल ले या खास कर या पाँव जमीन पर मार कर कोशिश करे कि रुका हुआ कतरा बाहर निकल पड़े । फिर पानी से पेशाब की जगह को धो डाले और पाखाना के बाद इस्तिन्जा करने का यह तरीका है कि पहले चन्द ढेलों या पत्थरों से पाखाना की जगह को पोछ कर साफ करले फिर पानी से अच्छी तरह धोले । 

मसला : - ढेला और पानी दोनों बायें हाथ से इस्तेमाल करे । दाहिने हाथ से इस्तिन्जा न करे । 

मसला : - ढेला इस्तेमाल करने के बाद पानी से भी धो लेना यह इस्तिन्जा का मुस्तहब तरीका है । वरना सिर्फ ढेला और सिर्फ पानी से भी इस्तिन्जा कर लेना जाइज है ।

मसला : - खाने की चीज़ें , कागज , हड्डी , गोबर , लीद , कोयला , और  जानवरों के चारा से इस्तिन्जा करना मना है । 

मसला : - पेशाब पाखाना करते वक्त किबला की तरफ मुंह या पीठ करना जाइज नहीं है । हमारे मुल्क में उत्तर या दक्खिन जानिब मुंह करना चाहिए । 

मसला : - तालाब या नदी के घाट पर , कुएं या हौज़ के किनारे , पानी में ,  अगरचे बहता हुआ पानी हो , फल वाले या सायादार पेड़ के नीचे , ऐसे खेत में जिस में खेती मौजूद हो , कब्रिस्तान में , बीच सड़क और रास्तों पर , जानवरों के बांधे जाने या बैठने की जगहों पर , और जहां लोग वुज़ू या ग़ुस्ल करते हों , और जिस जगह लोग उठते बैठते हों , इन सब जगहों पर पेशाब पाखाना करना मना है । ( दुर्दै मुख्तार जि . 1 स . 229 व आलमगीरी जि . 1 स . 47 )

मसला : - पेशाब पाखाना लोगों की निगाहों से छुप कर या किसी चीज़ की आड़ में बैठ कर करना चाहिए । जहां लोगों की नज़र सत्र पर पड़े पेशाब , पाखाना करना मना है । किलते 22 स . 3 ) 

मसला : - वुज़ू के बचे हुए पानी से इस्तिन्जा न करना चाहिए । ( बहारे शरीअत जि . 2 सं . 16 ) 

मसलाः - बच्चे को पाखाना , पेशाब फिराने वाले को यह मकरूह है कि उस बच्चे का मुंह या पीठ किबला की तरफ़ करे । औरतें इस तरफ तवज्जोह नहीं किया करती । उन्हें लाज़िम है कि इसका ख्याल रखें ।

मसला : - खड़े होकर या लेट कर या नंगे होकर पेशाब करना मकरूह है । यूंही नंगे सर पेशाब , पाखाना को जाना या अपने हमराह ऐसी चीज ले जाना जिस पर कोई दुआ या अल्लाह व रसूल या किसी बुजुर्ग का नाम लिखा हो , ममनूअ है । इसी तरह पेशाब पाखाना करते वक्त अज़ान होने लगे तो जबान से अज़ान का जवाब न दे । इसी तरह अगर खुद छींके तो जबान से है में अल्हम्दु लिल्लाह न कहे दिल में कह ले । इसी तरह किसी न छींक कर अल्हम्दु लिल्लाह कहा तो ज़बान से यर् - हमुकल्लाह कह कर छींक का । जवाब न दे । बल्कि दिल ही दिल में यर् - हमुकल्लाह कह ले । 

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