मकरूह वक़्तों का बयान | Makruh waqto ka bayaan in hindi

मकरूह वक़्तों का बयान 

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मसला : - सूरज निकलते वक़्त , सूरज डूबते वक़्त , और ठीक दोपहर के वक़्त कोई नमाज़ पढ़नी जाइज़ नहीं । लेकिन उस दिन की अस्त्र अगर नहीं पढ़ी है तो सूरज डूबने के वक़्त पढ़ ले | मगर अस्र में इतनी देर करके नमाज पढ़नी सख़्त गुनाह है ।

मसला : - इन तीनों वक़्तों में कुरआन मजीद की तिलावत बेहतर नहीं हैं । अच्छा यह है कि इन तीनों वक़्तों में कलिमा या तस्बीह , या दुरूद शरीफ़ वग़ैरह पढ़ने में मश़गूल रहे । ( आलमगीरी ) 

मसला : - अगर इन तीनों वक़्तों में जनाज़ा लाया गया तो उसी वक़्त पढ़ें कोई कराहत नहीं । कराहत इस सूरत में है कि जनाज़ा इन वक़्तों से पहले लाया गया । मगर नमाज़े जनाज़ा पढ़ने में इतनी देर कर दी कि मकरूह वक़्त आ गया । ( आलमगीरी ) 

 मसला : - जब सूरज का किनारा ज़ाहिर हो उस वक़्त से लेकर तक़रीबन बीस मिनट तक कोई नमाज़ जाइज़ नहीं । सूरज निकलने के बीस मिनट बाद जब सूरज एक लाठी के बराबर ऊँचा हो जाये उसके बाद हर नमाज़ चाहे  नफ़्ल हो या क़ज़ा या कोई दूसरी , पढ़नी चाहिए ।

मसला : - जब सूरज डूबने से पहले पीला पड़ जाये उस वक़्त से सूरज डूबने तक कोई नमाज जाइज नहीं । हां अगर उस दिन की अस्र अभी तक नहीं पढ़ी है तो उस को पढ़ ले नमाज़े अस्र अदा हो जाएगी । अगरचे मकरूह होगी ।

मसला : - ठीक दोपहर में कोई नमाज़ जाइज़ नहीं । मसला : - बारह वक़्तों में नफ़्ल और सुन्नत नमाज़ें पढ़ने की मुमानअ़त है । वह बारह वक़्त यह हैं - 

( 1 ) सुबह सादिक़ से पहले सूरज निकलने तक फ़ज़्र की दो रकअ़त सुन्नत और दो रकअ़त फ़र्ज़ के सिवा दूसरी कोई भी नमाज़े नफ़्ल पढ़नी मना है 

( 2 ) इक़ामत शुरू होने से जमाअ़त खत्म होने तक कोई सुन्नत व नफ़्ल पढ़नी मकरूह तहरीमी है । हां अलबत्ता अगर नमाज़े फ़ज़्र की इकामत होने लगी और उसको मालूम है कि सुन्नत पढ़ेगा जब भी जमाअ़त मिल जाएगी अगरचे कअ़दा ही सही , तो उसको चाहिए कि सफ़ों से कुछ दूर हट कर फ़ज़्र की सुन्नत पढ़ले और फिर जमाअ़त में शामिल हो जाये । और अगर वह यह जानता है कि सुन्नत पढ़ेगा तो जमाअत नहीं मिलगी तो उसको सुन्नत पढ़ने की इजाज़त नहीं । बल्कि उसको चाहिए कि बग़ैर सुन्नत पढ़े जमाअत में शामिल हो जाये । फ़ज़्र की इकामत के इलावा दूसरी नमाज़ो में इक़ामत हो जाने के बाद अगरचे यह जान ले कि सुन्नत पढ़ने के बाद भी जमाअत मिल जाएगी । फिर भी सुन्नत पढ़ने की इजाज़त नहीं बल्कि सुन्नत छोड़ कर फौरन जमाअत में शामिल हो जाना जरूरी है | 

 ( 3 ) नमाज़े अस्त्र पढ़ लेने के बाद सूरज डूबने तक कोई नफ़्ल नमाज़ पढ़नी मकरूह है । क़ज़ा नमाज़ें सूरज डूबने से बीस मिनट पहले तक पढ़ सकता है । 

( 4 ) सूरज डूबने के बाद और मग़रिब का फ़र्ज़ पढ़ने से पहले कोई नफ़्ल नमाज़ जाइज़ नहीं । 

( 5 ) जिस वक़्त इमाम अपनी जगह से जुमा के खुतबा के लिए खड़ा हो उस वक़्त से लेकर नमाज़े जुमा खत़्म होने तक कोई नमाज़ सुन्नत व नफ़्ल वग़ैरह जाइज़ नहीं । 

( 6 ) ऐन खुतबा के दर्मियान कोई नमाज़ सुन्नत व नफ़्ल वग़ैरह जाइज़ नहीं । चाहे जुमा का ख़ुतबा हो या ईदैन का या ग्रहन की नमाज़ का । या नमाज़े इस्तिस्का का या निकाह का । लेकिन हां साहेबे तर्तीब के लिए जुमा के ख़ुतबे के दर्नियान भी क़ाज़ा नमाज को पढ़ लेना लाजिम है । 

( 7 ) ईद की नमाज से पहले नफ़्ल मकरूह है । चाहे घर में पढ़े या मस्जिद में , या ईदगाह में । 

( 8 ) ईदैन की नमाज़ के बाद भी ईदगाह या मस्जिद में नमाज़े नफ़्ल पढ़नी मकरूह है । हां अगर घर में नफ़्ल पढ़े तो यह मकरूह नहीं ।

 ( 9 ) मैदाने अरफ़ात में जो जुहर व अस्त्र एक साथ पढ़ते हैं उन दोनों नमाजों के दर्मियान और बाद में नफ़्ल व सुन्नत मकरूह है ।

 ( 10 ) मुज़दलफा में जो मग़रिब व इशा एक साथ पढ़ते हैं उन दोनों नमाज़ों के बीच में नफ़्ल व सुन्नत पढ़नी मकरूह है । दोनों ने नमाज़ों के बाद अगर नफ़्ल व सुन्नत पढ़े मकरूह नहीं है । ( आलमगीरी व दुर्दै मुख्तार ) 

( 11 ) नमाज़ें फ़र्ज़ का वक़्त अगर तंग हो गया हो तो हर नमाज़ यहां तक कि फ़ज़्र व ज़ुहर की सुन्नतें पढ़नी भी मकरूह है । जल्दी जल्दी फ़र्ज़ पढ़ ले ताकि नमाज़ क़ज़ा न होने पाये ।

 ( 12 ) जिस बात से दिल बटे और उसको दूर कर सकता हो तो उसे दूर किये बग़ैर हर नमाज़ मकरूह है । मसलन पाख़ाना पेशाब या रियाह का ग़लबा हो तो ऐसी हालत में नमाज़ मकरूह है । यूं ही खाना सामने आ गया और भूक लगी हो या दूसरी कोई बात ऐसी हो जिस से दिल को इत्मीनान न हो तो ऐसी सूरत में भी नमाज़ पढ़नी मकरूह है । अलबत्ता अगर वक़्त जा रहा हो तो ऐसी हालत में भी नमाज़ पढ़ ले ताकि क़ज़ा न हो जाये लेकिन फिर उस नमाज़ को दुहराये । 

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