सज्दए तिलावत का बयान | Sajdae tilawat ka bayaan in hindi

सज्दए तिलावत का बयान 

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कुरआन मजीद में चौदह आयतें ऐसी है कि जिनके पढ़ने या सुनने से पढ़ने वाले और सुनने वाले दोनों पर सज्दा करना वाजिब हो जाता है । उसको सज्दए तिलावत कहते हैं । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 513 )

मसला : - सज्दए तिलावत का तरीका यह है कि किबला रुख खड़े होकर अल्लाहु अक्बर कहता हुआ सज्दे में जाये और कम से कम तीन बार सुबहा----न रब्बियल् अअ्ला कहे फिर अल्लाहु अक्बर कहता हुआ खड़ा हो जाये , बस । न उसमें अल्लाहु अक्बर कहते हुए हाथ उठाना है न उसमें तशह्हूद है न सलाम । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 513 )

मसला : - अगर आयते सज्दा नमाज के बाहर पढ़ी है तो फौरन ही सज्दा । कर लेना वाजिब नहीं है । हां बेहतर यही है कि फौरन ही करे और वुजू हो तो देर करनी मकरूह तन्ज़ीही है । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 517 )  

मसला : - अगर सज्दे की आयत नमाज में पढ़ी है तो फौरन ही सज्दा करना वाजिब है । अगर तीन आयत पढ़ने की मिकदार देर लगा दी तो गुनहगार होगा । और अगर नमाज में सज्दे की आयत पढ़ते ही फौरन रुकूअ में चला गया और रुकूअ के बाद नमाज के दोनों सज्दों को कर लिया तो अगरचे सज्दए तिलावतकी नीयत न हो मगर सज्दए तिलावत भी अदा हो गया । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 518 ) 

मसला : - नमाज़ में आयते सज्दा पढ़ी तो उसका सज्दा नमाज़ ही में वाजिब है । नमाज़ के बाहर यह सज्दा अदा नहीं हो सकता । ( दुर्रे मुख़्तार जि . 1 स . 518 ) 

 उर्दू ज़बान में अगरआयते सज्दा का तर्जमा पढ़ दिया तब भी पढ़ने वाले और सुनने वाले दोनों पर सज्दा वाजिब हो गया । ( आलमगीरी जि . 1 स . 124 )

मसलाः - एक मजलिस में आयते सज्दा पढ़ी और सज्दा कर लिया फिर  उसी मजलिस में दोबारा उसी आयत की तिलावत की तो दूसरा सज्दा वाजिब नहीं होगा । खुलासा यह है कि एक मजलिस में अगर बार बार आयते सज्दा पड़ी तो एक ही सज्दा वाजिब होगा । और अगर मजलिस बदल कर वही आयते सज्दा पढ़ी तो जितनी मजलिसों में उस आयत को पढ़ेगा उतने ही सज्दे उस पर वाजिब हो जोयंगे । 

मसला : - मजलिस बदलने की बहुत सी सूरतें हैं । मसलन कभी तो जगह बदल जाने से मजलिस बदल जाती है । जैसे मदरसा एक मजलिस है और मस्जिद एक मजलिस है और कभी एक ही जगह में काम बदल जाने से हैं मजलिस बदल जाती है । जैसे एक ही जगह बैठ कर सबक पढ़ाया तो यह मजलिसे दर्स हुई । फिर उसी जगह बैठे बैठे लोगों ने खाना शुरू कर दिया , तो मजलिस बदल गई कि पहले मजलिसे दर्स थी अब मजलिसे तआम हो गई । किसी घर में एक कमरे से दूसरे कमरे में चले जाने , कमरे से सेहन में  चले जाने से मजलिस बदल जाती है । किसी बड़े हाल में एक कोने से दूसरे के कोने में चले जाने से मजलिस बदल जाती है । वगैरह वगैरह मजलिस के बदल जाने की बहुत सी सूरतें हैं । ( दुर्रे मुख़्तार जि . स . 520 व आलमगीरी जि . 1 स . 126 ) 

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