जमाअत व इमामत का बयान | Zmaaot wa imamat ka bayaan in hindi

जमाअत व इमामत का बयान 

  Third party image reference

जमाअत की बहुत ताकीद है और उसका सवाब बहुत ज्यादा है । यहां तक कि बे जमाअत की नमाज से जमाअत वाली नमाज का सवाब सताईस गुना है । ( मिश्कात जि . 1 स . 95 )

मसला : - मर्दों को जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ना वाजिब है । बिला उज़्र एक बार भी जमाअत छोड़ने वाला गुनहगार और सजा के लाइक है और जमाअत छोड़ने की आदत डालने वाला फ़ासिक है । जिसकी गवाही कबूल नहीं की जाएगी और बादशाहे इस्लाम उसको सख्त सजा देगा । और अगर पड़ोसियों ने सुकूत किया तो वह भी गुनहगार होगे । ( रद्दलमुहतार जि . 1 , 371 ) 

मसला : - जुमा व ईदैन में जमाअत शर्त है यानी बगैर जमाअत यह दोनों नमाजें होंगी ही नहीं । तरावीह में जमाअत सुन्नते किफाया है । यानी मुहल्ला के कुछ लोगों ने जमाअत से पढ़ी तो सब के जिम्मे से जमाअत छोड़ने की बुराई जाती रही । और अगर सब ने जमाअत छोड़ी तो सब ने बुरा किया । रमजान शरीफ में वित्र को जमाअत से पढ़ना यह जमाअत मुस्तहब है । सून्नतो और नफ़्लों में जमाअत मकरूह है । ( दुरै मुख्तार जि . 1 स 301 )

मसला : - जिन उज़्रों की वजह से जमाअत छोड़ने में गुनाह नहीं वह ये हैं - 

( 1 ) ऐसी बीमारी कि मस्जिद तक जाने में मशक्कत और दुशवारी हो

 ( 2 ) सख़्त बारिश 

( 3 ) बहुत ज्यादा कीचड़ 

( 4 ) सख्त सर्दी 

( 5 ) सख्त अंधेरी रात 

( 6 ) आंधी 

( 7 ) पाख़ाना पेशाब की हाजत

 ( 8 ) रियाह का बहुत जोर होना

 ( 9 ) ज़ालिम का खौफ 

( 10 ) काफिला छूट जाने का खौफ

( 11 ) अंधा होना  

( 12 ) अपाहिज होना

( 13 ) इतना बूढा होना कि मस्जिद तक जाने से मजबूर हो

 ( 14 ) माल व सामान या खाना हलाक हो जाने का डर 

( 15 ) मुफलिस को कर्जख्वाह का डर

 ( 16 ) बीमार की देखभाल कि अगर यह चला जाएगा तो बीमार को तकलीफ होगी और वह घबराएगा । यह सब जमाअत छोड़ने के उज़्र हैं । 

( दुर्रे मुख्तार जि. 1 स . 373 ) 

मसला : - औरतों को किसी नमाज में जमाअत की हाजिरी जाइज नहीं । दिन की नमाज़ हो या रात की , जुमा की हो या ईदैन की , औरत चाहे जवान हो या बुढ़िया । यूं ही औरतों को ऐसे मजमों में जाना भी नाजाइज है जहां औरतों मर्दों का इज्तेमाअ हो । ( दुरें मुख्तार जि . 1 स , 380 )

मसला : - अकेला मुकतदी मर्द अगरचे लड़का हो इमाम के बराबर  दाहिनी तरफ खड़ा हो । बायें तरफ या पीछे खड़ा होना मकरूह है । दो मुकतदी हों तो पीछे खड़े हों । इमाम के बराबर खड़ा होना मकरूह तन्जीही है । दो से ज्यादा का इमाम के बगल में खड़ा होना मकरूह तहरीमी है ।    ( दुरै मुख्तार जि . 1 स . 381 ) 

मसला : - पहली सफ में और इमाम के करीब खड़ा होना अफ़ज़ल है ।

   ( दुरै मुख़्तार जि . 1 स . 383 ) 

मसला : - इमाम होने का सबसे ज्यादा हकदार वह शख्स है जो नमाज व तहारत वगैरह के अहकाम सबसे ज्यादा जानने वाला हो । फिर वह शख्स है जो किरअत का इल्म ज्यादा रखता हो । अगर कई शख्स इन बातों में बराबर हों तो वह शख्स ज्यादा हकदार है जो ज्यादा मुत्तकी हो । अगर इसमें भी बराबर हों तो ज्यादा उम्र वाला | फिर जिसके अखलाक ज्यादा अच्छे हों । फिर ज्यादा तहज्जुद गुजार , गर्जे कि चन्द आदमी बराबर दर्जे के हों तो उन में जो शरई हैसियत से फौकियत रखता हो वहीं ज्यादा हकदार है ।   ( दुरै मुख्तार जि . 1 स . 373 )

मसला : - फासिक मोअलिन जैसे शराबी , जिना कार , जुआरी , सूद खोर , दाढ़ी मुंडाने वाला , या कटा कर एक मुश्त से कम रखने वाला । इन लोगों को इमाम बनाना गुनाह है । और इन लोगों के पीछे नमाज मकरूह तहरीमी है । और नमाज को दोहराना वाजिब है । 

( दुरै मुख्तार जि . 1 स . 376 ) 

मसलाः - राफेजी , खारेजी , वहाबी और दूसरे तमाम बद - मजहबों के  पीछे नमाज़ पढ़ना नाजाइज व गुनाह है । अगर गलती से पढ़ ली तो फिर से पढ़े । अगर दोबारा नहीं पढ़ेगा तो गुनहगार होगा ।

 ( दुरै मुख़्तार जि . 1 स . 377 ) 

मसलाः - गँवार , अन्धे , हरामी , कोढ़ी , फालिज की बीमारी वाला , बर्स की बीमारी वाला , अमरद , इन लोगों को इमाम बनाना मकरूह तन्जीही है । और कराहत उस वक़्त है जब कि जमाअत में और कोई इन लोगों से बेहतर हो । और अगर यही इमामत के हकदार हों तो कराहत नहीं । और अन्धे की इमामत में तो खफीफ कराहत है ।

 ( दुरै मुख्तार जि . 1 स . 376 वगैरह ) 

Comments

Popular posts from this blog

नमाज़ पढ़ने का तरीका | Namaz padhne ka tarika in hindi

वित्र की नमाज़ | witr ki namaz in hindi

हैज़ व निफास के अहकाम | Haiz wa nifas ke ahkam in hindi part 2