जुमा का बयान | Juma ka bayaan in hindi

जुमा का बयान 

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जुमा फर्ज है और उसका फर्ज होना जुहर से ज्यादा मुअक्कद है । इसका मुन्किर काफ़िर है । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 535 ) हदीस शरीफ में है कि जिसने तीन जुमे बराबर छोड़ दिये उसने इस्लाम को पीठ के पीछे फेंक दिया । वह मुनाफ़िक है और अल्लाह से बे - तअल्लुक है । ( इब्ने खुजैमा व बहारे शरीअत ) 

मसला : - जुमा फर्ज होने के लिए मुन्दर्जा जैल ग्यारह शर्ते हैं ---- 

( 1 ) शहर में मुकीम होना - लिहाजा मुसाफ़िर पर जुमा फर्ज नहीं । 

( 2 ) आज़ादा होना - लिहाज़ा गुलाम पर जुमा फर्ज नहीं ।

 ( 3 ) तन्दुरुस्ती यानी ऐसे मरीज़ पर जुमा फर्ज नहीं जो जामा मस्जिद तक नहीं जा सकता 

( 4 ) मर्द होना यानी औरत पर जुमा फर्ज नहीं

 ( 5 ) आकिल होना यानी पागल पर जुमा फर्ज नहीं 

( 6 ) बालिग होना यानी बच्चा पर जुमा फर्ज नहीं 

( 7 ) अंखियारा होना यानी अन्धे पर जुमा फुर्ज नहीं 

( 8 ) चलने की कुदरत रखने वाला यानी अपाहिज और लुन्जे पर जुमा फर्ज नहीं 

( 9 ) कैद में न होना - लिहाजा जेल खाना के कैदियों पर जुमा फर्ज नहीं

 ( 10 ) हाकिम या ज़ालिम वगैरह का खौफ न होना 

( 11 ) बारिश या आधी का इस कदर ज्यादा न होना जिस से नुकसान  का कवी अन्देशा हो । ( दुर्रे मुख्तार व रघुल मुहतार जि , 1 स . 546  ) 

मसला : - जिन लोगों पर जुमा फर्ज नहीं मसलन मुसाफ़िर और अन्धे वगैरह अगर यह लोग जुमा पढ़े तो उनकी नमाजे जुमा सही होगी । यानी  जुहर की नमाज उन लोगों के जिम्मा से साकित हो जाएगी ।

मसलाः - जुमा जाइज़ होने के लिए छः शर्तें हैं । यानी उनमें से अगर एक भी नहीं पाई गई तो जुमा अदा होगा ही नहीं । 

पहली शर्त : - जुमा जाइज होने की पहली शर्त शहर या शहरी जरूरियात से तअल्लुक रखने वाली जगह होना । शरीअत में शहर से मुराद वह आबादी है कि जिस में मुतअद्दिद सड़कें , गलियां और बाजार हों , और वह जिला या तहसील का शहर या कस्बा हो कि उसके मुतअल्लिक देहात गिने जाते हों । और अगर जिला या तहसील न हो तो ज़िला या तहसील जैसी बस्ती हो । जुमा जाइज होने के लिए ऐसी बस्ती का होना शर्त है । लिहाजा छोटे छोटे गाँवों में जुमा नहीं पढ़ना चाहिए । बल्कि उन लोगों को रोजाना की तरह जुहर की नमाज जमाअत से पढ़नी चाहिए । लेकिन जिन गाँवों में पहले से जुमा काइम है जुमा को बन्द नहीं करना चाहिए कि अवाम जिस तरह भी अल्लाह व रसूल का नाम लें गनीमत है । लेकिन उन लोगों को चार रकअत नमाजे जुहर पढ़नी ज़रूरी है । ( फतावा रजविया वगैरह ) 

दूसरी शर्त : - दूसरी शर्त यह है कि बादशाहे इस्लाम या उसका नाइब जुमा काइम करे । और अगर वहां इस्लामी हुकूमत न हो तो सब से बड़ा सुऩ्नी सहीहुल अकीदा आलिमे दीन उस शहर का जुमा काइम करे कि बगैर उसकी इजाजत के जुमा काइम नहीं हो सकता । और अगर यह भी न हो तो आम लोग जिसको इमाम बनायें वह जुमा काइम करे | हर शख्स को यह हक नहीं कि जब चाहे और जहां चाहे जुमा काइम कर ले । 

तीसरी शर्त : - जुहर का वक़्त होना है । लिहाजा वक़्त से पहले या बाद में जुमा की नमाज पढ़ी गई तो जुमा की नमाज़ होगी ही नहीं । और अगर जुमा की नमाज़ पढ़ते पढ़ते अस्त्र का वक़्त शुरू हो गया तो जुमा बातिल हो गया । 

चौथी शर्त : - यह है कि नमाजे जुमा से पहले खुतबा हो जाये । खुतबा अरबी ज़बान में होना चाहिए । अरबी के इलावा किसी दूसरी ज़बान में पूरा खुतबा पढ़ना या अरबी के साथ किसी दूसरी ज़बान को मिलाना खिलाफे सुऩ्नत और मकरूह है ।

 पाँचवीं शर्त : - जुमा जाइज होने की पाँचवीं शर्त जमाअत है । जिस के लिए इमाम के सिवा कम से कम तीन मर्दों का होना जरूरी है । 

छटी शर्त : - इज़्ने आम होना जरूरी है । इसका मतलब यह है कि मस्जिद का दरवाजा खोल दिया जाये ताकि जिस मुसलमान का जी चाहे आये । किसी किस्म की रोक टोक न हो । लिहाजा बन्द मकान में जुमा पढ़ना जाइज नहीं होगा । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 536 से 546 वगैरह ) 

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