नमाजों की कजा का बयान | Namazo ki qaza ka bayaan in hindi

नमाजों की कजा का बयान 

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मसलाः - किसी इबादत को उस के मुकर्ररा वक़्त वर अदा करने को अदा कहते हैं । और वक़्त गुजर जाने के बाद अमल करने को कजा कहते हैं । 

मसलाः - फर्ज नमाजों की कजा फर्ज है । वित्र की कजा वाजिब है । फज्र की सुऩ्नत अगर फर्ज के साथ कजा हो और जवाल से पहले पढ़े तो फर्ज के साथ सुऩ्नत भी पढ़े । और अगर जवाल के बाद पढ़े तो सुऩ्नत की कजा नहीं । जुमा और जुहर की सुऩ्नतें कजा हो गई और फर्ज पढ़ लिया , अगर वक़्त खत्म हो गया तो उन सुऩ्नतों की कजा नहीं । और अगर वक़्त बाकी है तो उन सुऩ्नतों को पढ़े । और अफज़ल यह है कि पहले फर्ज के बाद वाली सुऩ्नतों को पढ़े फिर उन छूटी हुई सुऩ्नतों को पढ़े । ( दुर्रे मुख्तार जि , 1 स . 488 ) 

मसला : - जिस शख्स की पांच नमाजें या इससे कम कजा हो उसको साहेबे तर्तीब कहते हैं । उस पर लाजिम है कि वक़्ती नमाज से पहले कजा नमाजो को पढ़ ले । अगर वक़्त में गुन्जाइश होते हुए और कजा नमाज को याद रखते हुए वक़्ती नमाज़ को पढ़ ले तो यह नमाज नहीं होगी । मजीद तफ़सील “ बहारे शरीअत " में देखनी चाहिए ।  ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 . 488 ) 

मसला : - छः नमाजें या उससे ज्यादा नमाजें जिसकी कजा हो गई हों वह साहेबे तर्तीब नहीं । अब यह शख्स वक़्त की गुन्जाइश और याद होने के बावजूद अगर वक़्ती नमाज पढ़ लेगा तो उसकी नमाज हो जाएगी और छूटी हुई नमाजों को पढ़ने के लिए कोई वक़्त मुकर्रर नहीं है । उम्र भर में जब भी पढ़ेगा बरीउज़िम्मा हो जाएगा । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 489 ) 

मसला : - जिस रोज और जिस वक़्त की नमाज़ कज़ा हो । जब उस नमाज़ की कज़ा पढ़े तो ज़रूरी है कि उस रोज़ और उस वक़्त की कजा की नीयत करे । मसलन जुमा के दिन फज्र की नमाज़ कज़ा हो गई तो इस तरह नीयत करे कि नीयत की मैंने दो रकअत जुमा के दिन की नमाज़ फ़ज़्र की अल्लाह तआला के लिए मुंह मेरा तरफ कअबा शरीफ के अल्लाहु अक्बर । 

मसला : - अगर महीने दो महीने या चन्द बसों की कुजा नमाज़ों को पढ़े । तो नीयत करने में जो नमाज़ पढ़नी है उसका नाम ले और इस तरह नीयत करे - मसलन नीयत की मैंने दो रकअत नमाज़ फज्र की जो मेरे जिम्मा बाकी है उन में से पहली फज्र की अल्लाह तआला के लिए मुंह मेरा तरफ़ कअबा है शरीफ के अल्लाहु अक्बर । इस तरीका पर दूसरी कुजा नमाजों की नीयतों को समझ लेना चाहिए । 

मसला : - जो रकअतें अदा में सूरह मिला कर पढ़ी जाती हैं वह क़जा में भी सूरह मिला कर पढ़ी जायेंगी । और जो रकअते अदा में बगैर सूरह मिलाये पढ़ी जाती हैं वह क़ज़ा में भी बगैर सूरह मिलाये पढ़ी जायेंगी । 

मसलाः - मुसाफ़रत की हालत में जब कि कसर करता था उस वक़्त की छूटी हुई नमाजों को अगर वतन में भी क़ज़ा करेगा जब भी दो ही रकअत क़जा पढ़ेगा । और जो नमाजें मुसाफ़िर होने के जमाने में क़जा हुई हैं अगर सफ़र में भी उनकी कज़ा पढ़ेगा तो चार ही रकअत पढ़ेगा । ( आम्मए कुतुब ) 

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